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नवंबर, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मातृशक्ति

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 मातृशक्ति सब कुछ कर सकती है.....        आज देहरादून वापसी थी, ट्रेन का टिकट कन्फर्म नहीं हो पाया, फिर बस से जाने का फैसला लिया, घर से स्टेशन के लिये निकल रहा था तो कटघरिया चौराहे पर पहुँच कर अँधेरे में एक ऑटो दिखा और ऑटो के अंदर ड्राइविंग सीट पर एक महिला थी।        पहले मुझे भी अजीब लगा और सोचा शायद ऐसे ही बैठी होंगी। मैं ऑटो की प्रतीक्षा कर रहा था तब तक एक आवाज आई, भैया बाजार चलना है....मैंने हाँ में हामी भरी लेकिन मैंने उत्सुकतावस पूछा कि आप ऑटो चलाओगे?         पूरे हल्द्वानी में भावना जी इकलौती महिला हैं जो ऑटो चलाती हैं, बाकी और महिलाएं भी हैं(जैसा उन्होंने बताया) जो टुक टुक चलाती हैं। भावना जी ने बोला हाँ, मैं ही चलाती हूँ, मेरे लिये थोड़ी देर के लिये अजीब था लेकिन ज्यादा आश्चर्यजनक नहीं...         क्योंकि आजकल महिलाएं हर क्षेत्र में आगे आकर काम कर रही हैं....और घर परिवार की जिम्मेदारी भी बखूबी निभा रही हैं।         खैर कटघरिया चौराहे से बस स्टेशन का सफर तकरीबन 25 मिनट का रहा ज...

गुड़िया और चप्पल

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 "ये कितने की है लखन....?    " बस डेढ़ सौ की, लेकिन आपको तीस औऱ कम कर दूँगा...ले लीजिए ।"     "ठीक है , ठीक है, फ़िर दे दो...बहुत दिनों से इस घिसी चप्पल के भरोसे चल रहा हूँ ।"  पांव में फफोले उभर आये है, लाओ यहीं पहन लेता हूं,  वो सज्जन मन ही मन मुस्करा दिए। उनका अंदाज सही निकला था। बाज़ार के लिए वे अपने घर से एक सौ पचास ही लेकर चले थे, क्योंकि इससे ज़्यादा उनके पास कुछ था भी नहीं, आज बढ़िया सी चप्पलें ले कर ही आयेगे यह सोचकर।    दुकानदार लखन ने चप्पल को डब्बे से निकाल बाहर रख दिया, लीजिए तभी अचानक उस सज्जन की नजर सामने की शेल्फ पर पड़ी। वहाँ रंग -बिरंगे खिलौनों का ढेर लगा हुआ था। उनकी आँखों में बिजली की भांती नन्ही मीतू का चेहरा घूम गया। कितनी उदास थी वो सुबह  "क्यों डब्बू , यह गुड़िया कितने की है?"     "भैया जी , आपसे क्या ज्यादा लूँगा ?? यह सौ की है ,आप अस्सी दे देना। यह सजावट वाली वाली दो सौ की है, बोनी का टैम है डेढ़ सौ दे देना।  आवाज़ भी करती है।" पों पों पों पों.....उसने गुड़िया बजाकर उस सज्जन को दिखा भी दिया ।   वाह बि...

मैं धीरे-धीरे सीख रही हूं

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 मैं धीरे-धीरे सीख रही हूँ कि...  मुझे हर उस बात पर प्रतिक्रिया नहीं देनी चाहिए, जो मुझे चिंतित करती है। मैं धीरे-धीरे सीख रही हूँ कि... जिन्होंने मुझे चोट दी है,  मुझे उन्हें चोट नहीं देनी है। मैं धीरे-धीरे सीख रही हूँ कि... शायद सबसे बड़ी समझदारी का लक्षण भिड़ जाने के बजाय अलग हट जाने में है। मैं धीरे-धीरे सीख रही हूँ कि... अपने साथ हुए प्रत्येक बुरे बर्ताव पर प्रतिक्रिया करने में,  आपकी जो ऊर्जा खर्च होती है, वह आपको खाली कर देती है और आपको दूसरी अच्छी चीजों को देखने से रोक रही है। मैं धीरे-धीरे सीख रही हूँ कि... मैं हर आदमी से वैसा व्यवहार नहीं पा सकूंगी, जिसकी मैं अपेक्षा करती हूँ। मैं धीरे-धीरे सीख रही हूँ कि... किसी का दिल जीतने के लिए बहुत कठोर प्रयास करना, समय और ऊर्जा की बर्बादी है और यह आपको कुछ नहीं देता, केवल खालीपन से भर देता है। मैं धीरे-धीरे सीख रही हूँ कि...  जवाब नहीं देने का अर्थ यह कदापि नहीं कि यह सब मुझे स्वीकार्य है, बल्कि यह कि मैं इससे ऊपर उठ जाना बेहतर समझती हूँ। मैं धीरे-धीरे सीख रही हूँ कि... कभी-कभी कुछ नहीं कहना  सब कुछ बोल देता ...

नई राह

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  ऐसा हमारे साथ कई बार होता है कि हम किसी के लिए कुछ कर सकते हैं लेकिन फिर भी हम उन बातों पर ध्यान नहीं देते और जब दूसरे करते हैं तो हमें लगता है यह हम भी तो कर सकते थे।             रवि क्या तुम्हारे पास 100 रुपये हैं?कुछ दिनों के लिये उधार चाहिये।क्या दोगे?        झूठ नही बोलूंगा सुधीर,रुपये तो मेरे पास 150 है,पर इनसे मुझे स्कूल के बाद घर सामान लेकर जाना है।       प्लीज रवि तुम 100 रुपये मुझे दे दो,आज ही चाहिये,घर पर कोई बहाना बना देना।        अरे क्या जूते पडवाओगे?फिर मैं झूठ क्यों बोलूं?वैसे तुम्हे इतनी क्या जरूरत पड़ गयी,जो तुम मुझे भी घर झूठ तक बोलने को कह रहे हो?       रवि किसी से कहना नही,वो जो अपनी कक्षा में वीर सिंह अपना सहपाठी है ना,बहुत गरीब परिवार से है।आज परीक्षा के लिये रोल नंबर मिलने है,फीस बकाया होने के कारण बड़े बाबू द्वारा उसे रोल नंबर देने से मना कर दिया है।मैं अपना रोल नंबर लेने गया था,तब मैंने बा...

मुझे मीठा पसंद नहीं

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 मुझे मीठा पसंद नही.. नए शहर में व्यवस्थित होना तभी पूर्ण माना जाता है जब अच्छी कामवाली मिल जाए. सोनल की तलाश भी आख़िरकार पूरी हो ही गई. घर की साफ़-सफ़ाई और बर्तन के लिए उसने चंदा को रख लिया. कम बोलनेवाली साफ़-सुथरी चंदा का काम बढ़िया था. आज तक उसे कभी भी टोकने की ज़रूरत नहीं पड़ी. बस उसकी एक ही आदत सोनल को अखर जाती थी. वह जब भी उसे खाने-पीने को कुछ देती वह न खाने का कोई न कोई बहाना बनाकर उसे पर सरका देती. कभी कहती, "दीदी, छाला है मुंह में… कुछ निगला नहीं जा रहा…" कभी यूं ही बिना कुछ कहे खाने की वस्तु छोड़ जाती. दूसरे दिन पूछने पर चौंककर कहती, "अरे भूल गई थी खाना…" सोनल कभी सामने ही खाने को इसरार करती, तो वह साफ़ मना कर देती, "बहुत जल्दी में हूं दीदी…" कभी-कभी तो सीधे ही, "न दीदी मन नहीं, मीठा मुझे पसंद नहीं…" हां, मीठी चाय के लिए उसकी कभी 'न' नहीं होती, पर साथ में मठरी या नमकीन प्लेट में निकालकर दो, तो एक बार भर नज़र देखकर बोलेगी, "खाली चाय ही दो दीदी, अभी तो खा नहीं पाऊंगी." चंदा के व्यवहार का विश्लेषण आज सोनल इसलिए भी कर रही थी, क्योंक...

झांसे में आना

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 दिनभर का थका-हारा अविनाश डिनर करके अपने बेडरूम में जाकर लेट ही रहा था कि पाँचवीं कक्षा में पढ़ने वाला उसका बेटा मनु आकर पूछा," पापा...आपने मुहावरे पढ़े हैं?"    " हाँ-हाँ, क्यों नहीं।" थके हुए होने के बाद भी उसके स्वर में उत्साह था।     " तो पापा  ' झाँसे में आना ' का क्या अर्थ है?" अपनी काॅपी खोलकर मनु ने पूछा।    " वेरी सिम्पल बेटा..., धोखा में आना।"   " अच्छा पापा..., आप कभी झाँसे में आये हैं?" मनु ने पूछा तो अविनाश दीवार पर टँगी अपने माता-पिता की तस्वीर देखकर धीरे-से बोला, " हाँ....बहुत बार...।" और वह सोचने लगा, बचपन में जब वह दूध पीने में आना-कानी करता था तो माँ उसे प्यार-से कहती," मेरा राजा बेटा..., एक घूँट में दूध खत्म कर लेगा तो वह जल्दी-से बड़ा हो जाएगा।" इस झाँसे में आकर वह माँ के हाथों से न जाने कितने गिलास दूध पी गया था।बाबा तो अक्सर ही उसे ' बस थोड़ी दूर और ' कहकर उससे दौड़ लगवा लेते थें।तब उसे बाबा पर बहुत गुस्सा आता था लेकिन फिर जब स्कूल के दौड़-रेस में प्रथम आया तब बाबा पर उसे बहुत प्...

पानी बीच मीन प्यासी

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 लंबी कहानी- पानी बीच मीन प्यासी अम्मा की तेज़ आवाज़ कानों में पड़ते ही आदित्य की नींद खुल गई. अक्सर ऐसी आवाज़ सुनने का अभ्यस्त आदित्य लेटे हुए ही बोला, “क्या हुआ अम्मा? आज फिर से सुबह-सुबह क्यों शुरू हो गईं?” “क्या करूं? सुबह-सुबह तुम्हारी अर्धांगिनी के साथ भजन गाए बिना मेरा दिन जो शुरू नहीं होता! कभी ऐसा हुआ है कि सुबह उठने पर बिना प्रवचन सुने या सुनाए, एक कप चाय ही शांति से मिल जाए!” मां की ग़ुस्से भरी आवाज़ में गंभीरता के बदले खिलंदड़ापन महसूस कर उसे मन ही मन हंसी आ गई. “अब अम्मा, सोचो तो दोष तुम्हारा ही है. सही ढंग से काम सिखाओगी नहीं, तो बक-बक तो करना ही पड़ेगा न.” “तू तो चुप ही कर, जोरू का ग़ुलाम. कितना सिखाऊं, कहां तक सिखाऊं? एक काम भी ढंग से नहीं कर पाती. चाय बनाएगी तो दूध-शक्कर ऐसे डालेगी, मानो इसके मायके से फ्री कोटा में दूध और चीनी आता है. एक मेरी उमा है, बचपन से ही घर के कामकाज में इतनी दक्ष है कि लोग उसके काम देख दंग रह जाते हैं. जैसा मैंने अपनी बेटी को सिखाया, वैसा ही बहू की मां ने भी कुछ सिखाया होता तो आज मुझे ये दिन नहीं देखने पड़ते.” फिर हमेशा की तरह उसकी अम्मा देर तक बेटी ...

कबाड़

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 कबाड़ "आपके घर पुताई होते हुए देखकर ही मैं समझ गया था कि इस बार तो बहुत सामान मिलने वाला है...।" कबाड़ खरीदने वाले ने अपने ठेले पर सामान भरते हुए कहा। "आजकल धंधा कैसा चल रहा है काका...?" संजय ने कुछ और सामान उसकी और बढ़ते हुए पूछा। "अच्छा चल रहा है... इस घर से ही करीब चालीस बरस हो गए मुझे... पुराना सामान लेते हुए... मैंने तो तुम्हारी दादी तक से भी बहुत जूना-पुराना सामान लिया है बाबू और वह भी जब भी सामान निकालती थी तो मेरी ही राह देखती थी...।" "हाँ... वह तो मैं भी बचपन में देखा करता था। अब तो मेरी ही उम्र पचास हो चली है तो मेरे ख्याल से आप तो सत्तर के करीब होंगे?" "हाँ ... पूरा जीवन ही इस धंधे में गुजार दिया...।" "पर पहले की तरह अब भी चल रहा है धंधा...?" " धंधा तो पहले से अच्छा चल रहा है ... नहीं तो इस उम्र में क्यों घूमता... पहले तो लोग पुरानी चीजों को कितना दिल से लगा कर रखते थे... टूटी-फूटी फ्रेम देते हुए भी कितने हाथों को मैंने कांपते हुए उसे वापस उठने देखा है... फ्रेम से चिपकी हुई तस्वीरें जिन पर पानी उतर आया हुआ होत...

बिटिया

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 बिटिया....!! बच्चों को स्कूल ले जाने व छोड़ने वाले के चेहरे पर  कई दिनों से मै चिन्ता की रेखाएँ साफ पढ़ सकता था  एक दिन रहा न गया तो दोपहर को बच्चे छोड़ कर  जाते हुए मैने उसे रोक ही लिया। -आओ बुद्धराम पानी पी लो बडी गर्मी है.... वह रुक गया मैने उसे अपने कमरे में बिठा कर  पानी पिलाया...  पानी पी कर वह माथे और चेहरे का  पसीना पोंछने लगा... -क्या बात है भई  लगता है कई रोज से तुम परेशान हो.... -नही बाबू जी ऐसी कोई बात नहीं है  उसने कह तो दिया  मगर वह अपनी पीड़ा छुपा न सका। -नही बाबू जी ऐसी कोई बात नही है  दरअसल दस दिन बाद बिटिया की शादी है  और थोडी सी पैसे की कमी रह गई है,  अपने भाइयों बिरादरी वालों यहाँ तक कि  जिन के घर बच्चे छोड़ता हूँ सभी से पूछ चुका हूँ-  वह सकुचाते हुए बोला। -लेकिन तुमने मुझ से तो नही पूछा। -वो बाबू जी क्या है कि  मेम साहब से पूछा था,  उन्होंने मना कर दिया था  कहते कहते लगा कि वह शायद रो ही देगा... -कितनी कमी रह गई... -यही पाँच हजार रुपये... -लौटाओगे कैसे, मैने पूछा। -हर महीने पाँच-प...

छठ पूजा विशेष

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 छठ पूजा विशेष 〰️〰️🌼〰️〰️ कार्तिक मास की अमावस्या को दीवाली मनाने के तुरंत बाद मनाए जाने वाले इस चार दिवसिए व्रत की सबसे कठिन और महत्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल षष्ठी की होती है। इसी कारण इस व्रत का नाम करण छठ व्रत हो गया। छठ पर्व षष्ठी तिथि का अपभ्रंश है। सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है। इस पर्व को वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है। पारिवारिक सुख-स्मृद्धि तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है।  छठ पर्व में सूर्य और छठी मैया की पूजा  〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ छठ पूजा में सूर्य देव की पूजा की जाती है और उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। सूर्य प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देने वाले देवता है, जो पृथ्वी पर सभी प्राणियों के जीवन का आधार हैं। सूर्य देव के साथ-साथ छठ पर छठी मैया की पूजा का भी विधान है।  सूर्य और छठी मैया का संबंध भाई बहन का है। मूलप्रकृति के छठे अंश से प्रकट हो...

सरप्राइज(स्वाभिमान)

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 सरप्राइज मोहनबाबू ने कमरे में घुसते ही कहा....   *सरप्राइज.. सरप्राइज* क्या सरप्राइज है पापा ?? सुमित उत्सुकता से बोला  सुमित और तान्या .ये लो बगल वाली सोसायटी में 2BHK फ्लैट तुम्हारे लिये, व्हाट....?  ये आप क्या कह रहे हैं ? पापा..... हमारे लिए अलग से फ्लैट...? हम यहां खुश है पापा  क्युं तान्या ..... हां पापा... सुमित सही कह रहा है,  मुझे यहां कोई दिक्कत नहीं है तान्या बोली  इससे पहले मोहनबाबू कुछ बोलें सुमित बीच में बोल पडा और पापा ! हर मां बाप चाहते हैं, कि उनकी औलाद उनके पास रहे तो आपकी ये अलग फ्लैट वाली बात और इतने पैसे कहां से आए आपके पास ?? बेटा बात ऐसी है, तुम्हारी शादी के लिए.. बहुत कुछ जोड़कर रखा था, तुम हमारे इकलौते बेटे जो ठहरे । बडे अरमान थे. ये करूंगा वो करुंगा ....सब धरे के धरे रह गए,  क्योंकि तुमने लव मैरिज जो कर ली, तो शादी के तामझाम में होनेवाला मेरा खर्चा बच गया, तो उसीसे तुम दोनों के लिए एक फ्लैट. तुम दोनों कमाते हो, दोनों सुबह आँफिस निकल जाते हो, EMI है कुछ सालों की,  भर दिया करना, और कल को बच्चे होगे, तो उनके भविष्य के ...

कृष्णावल

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कृष्णावल....!!! यदि आज की आधुनिक शिक्षा प्राप्त पीढ़ी से आप पूछें कि "कृष्णावल" क्या है तो संभव है कि ९८ % तो यही कहेंगे कि उन्होंने यह शब्द सुना कभी सुना ही नहीं है। पर यदि आप दादी नानी से पूछें या पचास वर्ष पूर्व के लोगों से पूछें तो वे आपको बता देंगे कि गाँव में "कृष्णावल" प्याज या पालंडु को कहा जाता है। और यह शब्द ही प्याज के लिए प्रचलित था उस समय में। प्याज को ग्रामीण क्षेत्रों में कांदा भी कहते हैं। अंग्रेजी में इसे Onion 🧅 ऑनियन या अन्यन कहते हैं। यह कंद श्रेणी में आता है जिसकी सब्जी भी बनती है और इसे सब्जी बनाने में मसालों के साथ उपयोग भी किया जाता है। इसे संस्कृत में कृष्णावल कहते थे। वैसे इस शब्द को विस्मृत कर दिया गया है और आजकल यह शब्द प्रचलन में नहीं है। कृष्‍णावल कहने के पीछे एक रहस्य छुपा हुआ है। आईए, देखिए कि प्याज को क्यों कहते हैं कृष्णावल.! १. दक्षिण भारत में खासकर कर्नाटक और तमिलनाडु के ग्रामीण क्षेत्रों में प्याज को आज भी कृष्णावल नाम से ही जाना जाता है। २. इसे कृष्णवल कहने का तात्पर्य यह है कि जब इसे खड़ा काटा जाता है तो वह शङ्खाकृति यानी शङ्ख...

आशीर्वाद

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 बच्चों को स्कूल बस में बैठाकर वापस आ शालू खिन्न मन से टैरेस पर जाकर बैठ गई.* *शालू की इधर-उधर दौड़ती सरसरी नज़रें थोड़ी दूर एक पेड़ की ओट में खड़ी बुढ़िया पर ठहर गईं.* *'ओह! फिर वही बुढ़िया, क्यों इस तरह से उसके घर की ओर ताकती है ?’* *शालू की उदासी बेचैनी में तब्दील हो गई, मन में शंकाएं पनपने लगीं. इससे पहले भी शालू उस बुढ़िया को तीन-चार बार नोटिस कर चुकी थी.* *दो महीने हो गए थे शालू को पूना से गुड़गांव शिफ्ट हुए, मगर अभी तक एडजस्ट नहीं हो पाई थी.* *सब कुछ कितना सुव्यवस्थित चल रहा था पूना में. उसकी अच्छी जॉब थी. घर संभालने के लिए अच्छी मेड थी, जिसके भरोसे वह घर और रसोई छोड़कर सुकून से ऑफ़िस चली जाती थी.* *घर के पास ही बच्चों के लिए एक अच्छा-सा डे केयर भी था. स्कूल के बाद दोनों बच्चे शाम को उसके ऑफ़िस से लौटने तक वहीं रहते. लाइफ़ बिल्कुल सेट थी, मगर सुधीर के एक तबादले की वजह से सब गड़बड़ हो गया.* *दो दिन बाद सुधीर टूर से वापस आए, तो शालू ने उस बुढ़िया के बारे में बताया. सुधीर को भी कुछ चिंता हुई, “ठीक है, अगली बार कुछ ऐसा हो, तो वॉचमैन को बोलना वो उसका ध्यान रखेगा, वरना फिर देखते हैं, पुलिस कम्प्ल...

चांद ने की भगवान् राम से शिकायत

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 चाँद ने की भगवान् राम से शिकायत 〰️〰️🌼〰️〰️〰️🌼〰️〰️ चाँद को भगवान् राम से यह शिकायत है की दीपवली का त्यौहार अमावस की रात में मनाया जाता है और क्योंकि अमावस की रात में चाँद निकलता ही नहीं है इसलिए वह कभी भी दीपावली मना नहीं सकता। यह एक मधुर कविता है कि चाँद किस प्रकार खुद को राम के हर कार्य से जोड़ लेता है और फिर राम से शिकायत करता है और राम भी उस की बात से सहमत हो कर उसे वरदान दे बैठते हैं आइये देखते हैं । जब चाँद का धीरज छूट गया । वह रघुनन्दन से रूठ गया । बोला रात को आलोकित हम ही ने करा है । स्वयं शिव ने हमें अपने सिर पे धरा है । तुमने भी तो उपयोग किया हमारा है । हमारी ही चांदनी में सिया को निहारा है । सीता के रूप को हम ही ने सँभारा है । चाँद के तुल्य उनका मुखड़ा निखारा है । जिस वक़्त याद में सीता की , तुम चुपके - चुपके रोते थे । उस वक़्त तुम्हारे संग में बस , हम ही जागते होते थे । संजीवनी लाऊंगा , लखन को बचाऊंगा ,. हनुमान ने तुम्हे कर तो दिया आश्वश्त मगर अपनी चांदनी बिखरा कर, मार्ग मैंने ही किया था प्रशस्त । तुमने हनुमान को गले से लगाया । मगर हमारा कहीं नाम भी न आया । रावण की मृत...

शिक्षा कभी व्यर्थ नहीं जाती

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 शिक्षा कभी व्यर्थ नहीं जाती.....!! आज पिंकी के बाबा बहुत खुश थे आखिर खुश होते भी क्यों नहीं आज के दिन का उन्होंने बहुत वर्षों इंतज़ार किया था....!! अपनी मां यानी पिंकी की दादी की बहुत सारी गालियां भी सुनी थी....!! आस पडोस वाले अलग तंग करते मतलब सब इन बाप बेटियों का मज़ाक उड़ाते थे |  मज़ाक उड़ाते भी क्यों नहीं आखिर उन सभी की बच्चियां सुघर थीं सिलाई, कढ़ाई, बुनाई या कोई भी या कोई भी बेहतरीन डिशेज हों उनकी बच्चियां आसानी से बना लेति थीं सोने पे सुहागा ये की उन लोगों की बच्चियां पढ़ाई भी करतीं थी |  स्कूल के दिनों में पिंकी अपने शिक्षक  _ शिक्षिकाओं के आंखों की तारा थी ,सभी चाहते थे की पिंकी और आगे जाए.... लेकिन उसके आगे बढ़ने में रुकावट फाइनेंशियल बैकग्राउंड थी क्योंकि पिंकी एक बहुत ही गरीब परिवार से थी | उसके बाबा गांव के बड़े लोगों के खेतों में मजदूरी किया करते थे और माता जी उन्हीं बड़े लोगों के घरों में झाड़ू पोंछे का काम किया करतीं थीं ,इस से पगार मिलता उस से इनलोगों की दाल रोटी चलती ,पिंकी के पढ़ाई का थोड़ा बहुत खर्च निकल जाता और दादी की दवाई भी इसी से पूरी होती ...

आवश्यकता पड़ने पर समर्थ हो लड़का हो या लड़की

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रीत के ससुराल की अनोखी रीत !! एक बहु की कल्पना ...... रीत की शादी को आज लगभग पांच दिन हो गए , आज पहली बार उसे रसोई में जाने का मौका मिला । पहले तो घर मे रीति रिवाज और उसके बाद मेहमानों की इतनी भीड़ भाड़ ,  आज जाकर उसने पहली बार रसोई में कदम रखा था । सभी मेहमान लगभग जा चुके थे और शादी के बाद पहली रसोई के शगुन के नाम से आज रीत को रसोई बनानी थी ।  पर ये क्या ?? यहाँ तो पहले ही से सासु माँ खाना बनाने की तैयारी कर रही है , उसे लगा सासु माँ नाराज़ है डरते डरते ...... उसने सासु माँ से पूछा , माँ जी ये सब ?? आज तो मुझे ही सब बनाना है ना , सासु माँ ने कहा " हाँ बहु बनाना तो है ,  लेकिन आज से हम दोनों साथ खाना बनायेंगी , अभी तीन चार दिन तो मुझे तुम्हे समझाना भी पड़ेगा कि हमारे यहां कैसा खाना बनता है , और दोनों ने मिल कर खाना बनाना शुरू कर दिया । खाना बनाते बनाते उसकी सासु माँ ने उससे काफी बातें की , जैसे उसे सबसे अच्छा क्या बनाना आता है , सबसे ज्यादा खाने में क्या पसन्द है , उनके घर मे खाना कौन और कैसे बनाता है , पर इन सबके बीच , सासु माँ ने कुछ ऐसा कहा की रीत की आंखे खुली की खुली रह ग...

जीवन का सूत्र

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 *भीष्म चुप रहे , कुछ क्षण बाद बोले," पुत्र युधिष्ठिर का राज्याभिषेक करा चुके केशव ... ?* *उनका ध्यान रखना , परिवार के बुजुर्गों से रिक्त हो चुके राजप्रासाद में उन्हें अब सबसे अधिक तुम्हारी ही आवश्यकता है" .... !* *कृष्ण चुप रहे .... !* *भीष्म ने पुनः कहा ,  "कुछ पूछूँ केशव .... ?* *बड़े अच्छे समय से आये हो .... !* *सम्भवतः धरा छोड़ने के पूर्व मेरे अनेक भ्रम समाप्त हो जाँय " .... !!* *कृष्ण बोले - कहिये न पितामह ....!* *एक बात बताओ प्रभु !  तुम तो ईश्वर हो न .... ?* *कृष्ण ने बीच में ही टोका ,  "नहीं पितामह ! मैं ईश्वर नहीं ...  मैं तो आपका पौत्र हूँ पितामह ... ईश्वर नहीं ...."* *भीष्म उस घोर पीड़ा में भी ठठा के हँस पड़े .... !  बोले , " अपने जीवन का स्वयं कभी आकलन नहीं कर पाया कृष्ण , सो नहीं जानता कि अच्छा रहा या बुरा , पर अब तो इस धरा से जा रहा हूँ कन्हैया , अब तो ठगना छोड़ दे रे .... !! "* *कृष्ण जाने क्यों भीष्म के पास सरक आये और उनका हाथ पकड़ कर बोले ....  " कहिये पितामह .... !"* *भीष्म बोले , "एक बात बताओ कन्हैया !  इस युद्ध में ज...

सहआस्तित्व

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 तीन दिन पहले मैं एक हाईवे पर जा रहा था.. रास्ते में एक ओवर ब्रिज पड़ा जिसके नीचे एक छोटी सी चाय की दुकान थी.. एक लड़का उस दुकान पर था जो पकौड़ी तल रहा था.. मैने गाड़ी वहीं रोकी और दुकान वाले लड़के से कहा कि चाय और पकौड़ी खिलाओ दोस्त.. वो लड़का, मुश्किल से 23 या 24 साल का होगा, अच्छे परिवार से लग रहा था.. मेरे लिए पकौड़ी बनाने लगा.. उसने कहा आपको ऐसी पलक की पकौड़ी खिलाऊंगा कि आप याद रखेंगे भईया.. दुकान के बाहर पड़ी बेंच पर मैं और मेरा दोस्त बैठ गए तभी वहां एक छोटा लड़का आया.. जो मेरे फोन की स्क्रीन को बड़े ध्यान से देख रहा था.. क्योंकि उसने इतनी बड़ी स्क्रीन शायद कभी देखी नहीं थी, मैने कहा आओ ठीक से देख लो, तो वो शरमा गया.. मगर थोड़ी देर बाद मेरे पास आया और कहने लगा, भईया मेरे भाई को फोन कर दो, उस से बात करनी है मुझे.. मैने चाय वाले की तरफ़ देखा तो उसने कहा "अरे भईया, ये जो आप देख रहे हैं, ओवरब्रिज, आजकल इसके नीचे से ट्रक निकलते हैं गन्ना लाद के.. गन्ने का मौसम है तो दिन भर गन्ने वाले ट्रक यहां से गुजरते हैं, जो ट्रक ओवरलोडेड होते हैं उन पर लदा गन्ना ओवरब्रिज से टकरा कर नीचे गिर ज...