नई राह
ऐसा हमारे साथ कई बार होता है कि हम किसी के लिए कुछ कर सकते हैं लेकिन फिर भी हम उन बातों पर ध्यान नहीं देते और जब दूसरे करते हैं तो हमें लगता है यह हम भी तो कर सकते थे।
रवि क्या तुम्हारे पास 100 रुपये हैं?कुछ दिनों के लिये उधार चाहिये।क्या दोगे?
झूठ नही बोलूंगा सुधीर,रुपये तो मेरे पास 150 है,पर इनसे मुझे स्कूल के बाद घर सामान लेकर जाना है।
प्लीज रवि तुम 100 रुपये मुझे दे दो,आज ही चाहिये,घर पर कोई बहाना बना देना।
अरे क्या जूते पडवाओगे?फिर मैं झूठ क्यों बोलूं?वैसे तुम्हे इतनी क्या जरूरत पड़ गयी,जो तुम मुझे भी घर झूठ तक बोलने को कह रहे हो?
रवि किसी से कहना नही,वो जो अपनी कक्षा में वीर सिंह अपना सहपाठी है ना,बहुत गरीब परिवार से है।आज परीक्षा के लिये रोल नंबर मिलने है,फीस बकाया होने के कारण बड़े बाबू द्वारा उसे रोल नंबर देने से मना कर दिया है।मैं अपना रोल नंबर लेने गया था,तब मैंने बाहर से सुना।वीर सिंह काफी गिड़गड़ा रहा था,पर उसे रोल नंबर नही मिला।उसका ये साल बेकार हो जायेगा, यह सोच मैंने बड़े बाबू से उसकी बकाया फीस के बारे में पूछा तो उन्होंने 250 रुपये बताये, रवि मेरे पास 150 रुपये हैं, तू 100 रुपये दे देगा तो हम उसकी 250 रुपयो की फीस जमा कर देंगे।प्लीज रवि।
अरे सुधीर जब तुम अपने सहपाठी के बारे में इतना सोच रहे हो,तो भाई वीर सिंह मेरा भी तो सहपाठी है,तो मैं क्यो नही उसके लिये कुछ कर सकता?चल सुधीर हम वीर सिंह की फीस जमा करते हैं।इस कार्य के लिये घर पर भी मैं बहाना नही बनाऊंगा, बल्कि सच बताऊंगा,भले ही जूते खाने पड़े।
रवि और सुधीर ने मिलकर वीर सिंह की फीस जमा करा कर बड़े बाबू से प्रार्थना की कि वे स्वयं वीर सिंह को बुला कर उसका रोल नंबर दे दे।कृपया उसको ये भी ना बताये कि उसकी फीस हमने जमा की है।
बड़े बाबू उन दो बच्चों को आश्चर्य से देख रहे थे और सोच भी रहे थे कि जो काम उन बच्चो ने किया है क्या वे स्वयं नही कर सकते थे?बडे बाबू ने उठकर रवि और सुधीर को गले से लगा लिया।
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