सहआस्तित्व
तीन दिन पहले मैं एक हाईवे पर जा रहा था.. रास्ते में एक ओवर ब्रिज पड़ा जिसके नीचे एक छोटी सी चाय की दुकान थी.. एक लड़का उस दुकान पर था जो पकौड़ी तल रहा था.. मैने गाड़ी वहीं रोकी और दुकान वाले लड़के से कहा कि चाय और पकौड़ी खिलाओ दोस्त.. वो लड़का, मुश्किल से 23 या 24 साल का होगा, अच्छे परिवार से लग रहा था.. मेरे लिए पकौड़ी बनाने लगा.. उसने कहा आपको ऐसी पलक की पकौड़ी खिलाऊंगा कि आप याद रखेंगे भईया.. दुकान के बाहर पड़ी बेंच पर मैं और मेरा दोस्त बैठ गए
तभी वहां एक छोटा लड़का आया.. जो मेरे फोन की स्क्रीन को बड़े ध्यान से देख रहा था.. क्योंकि उसने इतनी बड़ी स्क्रीन शायद कभी देखी नहीं थी, मैने कहा आओ ठीक से देख लो, तो वो शरमा गया.. मगर थोड़ी देर बाद मेरे पास आया और कहने लगा, भईया मेरे भाई को फोन कर दो, उस से बात करनी है मुझे.. मैने चाय वाले की तरफ़ देखा तो उसने कहा "अरे भईया, ये जो आप देख रहे हैं, ओवरब्रिज, आजकल इसके नीचे से ट्रक निकलते हैं गन्ना लाद के.. गन्ने का मौसम है तो दिन भर गन्ने वाले ट्रक यहां से गुजरते हैं, जो ट्रक ओवरलोडेड होते हैं उन पर लदा गन्ना ओवरब्रिज से टकरा कर नीचे गिर जाता है, तो ये दो तीन लड़के उसे उठाते रहते हैं और शाम तक इनके पास तीन से चार क्विंटल गन्ना इक्कट्ठा हो जाता है जिसे ये 200 रुपए पर क्विंटल के हिसाब से बेच देते हैं.. इस लड़के के भाई के पास इलेक्ट्रिक गाड़ी है जिसे वो लेकर आएगा और गन्ना भर के ले जाएगा, इसीलिए उसे फोन करना है इसे, आप कर दीजिए फोन प्लीज"
फिर उस लड़के ने मेरे फोन से अपने भाई को बुलाया.. उसके भाई का नाम एहसान था, ज़ाहिर है ये और उसका भाई मुस्लिम थे.. चाय वाला लड़का पंडित था.. मैने इस लड़के से कहा कि मुझे थोड़े से गन्ने दो मेरे बेटे के लिए, वो दौड़कर ले आया.. मैने कहा काट दो, तो चाय वाले लड़के ने कहा कि मैं काट के बांध दूंगा अभी भईया, आप के लिए पहले पकौड़ी बना दूं.. गन्ने वाले लडकें को मैने गन्ने के बदले कुछ पैसे देने चाहे मगर वो लेने से इंकार करने लगा, फिर मैंने ज़बरदस्ती उसे पकड़ा दिया.. पहले मैंने गन्ने वाले लड़के से पूछा था कि पकौड़ी खाओगे बेटा, तो उसने मना कर दिया था, मगर जब मैने उसे गन्ने के पैसे दिए तो उसने थोड़ी देर बाद उन्हीं पैसों से पकौड़ी खरीद के खाई चाय वाले से.. उसने उसे कम पैसों के बदले ज़्यादा सी पकौड़ी दी
चाय वाले की दुकान पर ट्रक की आवाजाही की वजह से बड़ी धूल आ रही थी, मैने उस से पूछा कि तुम अपनी दुकान के सामने पन्नी लगा लो, तो कहने लगा, भईया पन्नी के पैसे जोड़ रहा हूं, चार सौ की आएगी
पकौड़ी बनाने के बाद वो गन्ना काटने लगा..वो इधर गन्ना काट कर छोटा कर रहा था ताकि मेरी गाड़ी में आ जाए, और उधर इस गन्ने वाले लड़के ने चाय वाले की दुकान संभाल ली और जो एक दो ग्राहक आ रहे थे पान मसाला आदि लेने के लिए, वो उन्हें देने लगा और पैसे गल्ले में डाल देता था.. चाय वाला पंडित और और वो मुस्लिम लड़का, बिना कुछ भी "बड़ा बड़ा" बोले एक दूसरे की जरूरतें समझ रहे थे और अपनी प्राकृतिक सहअस्तित्व की भावना से एक दूसरे का सपोर्ट कर रहे थे
जब मैं चलने को हुआ तो चाय वाले ने कहा कि 35 रुपए हुवे भईया चाय और पकौड़ी के.. मैने उसे जब ज़्यादा पैसा दिया तो वो कहने लगा ये बहुत ज़्यादा है भईया, मैने कहा रख लो.. फिर जब मैं गाड़ी में आ कर बैठा तो मेरे दोस्त ने कहा कि ये 400 रुपए जोड़ रहा है पन्नी खरीदने के लिए.. मैने कहा हां यार, मैं भूल हो गया था एकदम.. फिर मैंने उसे गाड़ी के पास बुलाया और सकुचाते हुए उस से पूछा कि क्या तुमको पन्नी के पैसों की ज़रूरत है? उसने कहा भईया मैं इकट्ठा कर लूंगा.. मैने कहा मुझ से ले लो दोस्त.. कहने लगा नहीं.. मैने उस से कहा कि तुमने दो लोगों को खालिस बेसन में बनी अच्छी पकौड़ी खिलाई और कुल्हड़ में चाय दी, अगर ये मैं किसी अच्छे रेस्टोरेंट में खाता तो कम से कम इसके पांच सौ देता.. इसलिए ये भीख नहीं है, तुम्हारी पकौड़ी का दाम है शहर के हिसाब से.. फिर उसने पैसे ले लिया मगर हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया और भावुक हो गया.. गन्ने वाला लड़का भी वहीं था मैंने उसे भी और पैसे दिए और कहा कि तुम समझ लो तुम्हारा एक क्विंटल गन्ना मैने ले लिया.. शहर में इतने गन्ने का मैं इतना ही देता बेटा.. उसने भी सकुचाते हुवे पैसे ले लिया
मैंने गाड़ी आगे बढ़ा ली मगर दोनो देर तक भावुक खड़े मुझे देखते रहे.. मैने मन ही मन इनके सहस्तित्व के लिए दुआ की और आगे बढ़ गया।
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