आवश्यकता पड़ने पर समर्थ हो लड़का हो या लड़की




रीत के ससुराल की अनोखी रीत !! एक बहु की कल्पना ......


रीत की शादी को आज लगभग पांच दिन हो गए , आज पहली बार उसे रसोई में जाने का मौका मिला । पहले तो घर मे रीति रिवाज और उसके बाद मेहमानों की इतनी भीड़ भाड़ , 


आज जाकर उसने पहली बार रसोई में कदम रखा था । सभी मेहमान लगभग जा चुके थे और शादी के बाद पहली रसोई के शगुन के नाम से आज रीत को रसोई बनानी थी । 


पर ये क्या ?? यहाँ तो पहले ही से सासु माँ खाना बनाने की तैयारी कर रही है , उसे लगा सासु माँ नाराज़ है डरते डरते ...... उसने सासु माँ से पूछा , माँ जी ये सब ?? आज तो मुझे ही सब बनाना है ना , सासु माँ ने कहा " हाँ बहु बनाना तो है ,


 लेकिन आज से हम दोनों साथ खाना बनायेंगी , अभी तीन चार दिन तो मुझे तुम्हे समझाना भी पड़ेगा कि हमारे यहां कैसा खाना बनता है , और दोनों ने मिल कर खाना बनाना शुरू कर दिया ।


खाना बनाते बनाते उसकी सासु माँ ने उससे काफी बातें की , जैसे उसे सबसे अच्छा क्या बनाना आता है , सबसे ज्यादा खाने में क्या पसन्द है , उनके घर मे खाना कौन और कैसे बनाता है , पर इन सबके बीच , सासु माँ ने कुछ ऐसा कहा की रीत की आंखे खुली की खुली रह गयी !! 


जब उन्होंने बताया कि हमारे यहाँ कोई बर्तन वाली नही आती ,बल्कि सब अपने अपने खाने के बर्तन खुद साफ करते है , रीत ने आश्चर्य से उन्हें देखा , क्योंकि !! उसने ऐसा कभी कही भी नही देखा था या तो हर घर मे कोई काम वाली आती या ये सब घर की ही महिला को ही करना पड़ता है । 


उसे बहुत उत्सुकता हुई ये जानने की, कि कैसे उनके मन मे ये विचार आया ?? तो उन्होंने बताया , पहले तो जब मेरी शादी हुई तब मेरी सासु माँ और मैं मिल कर सब काम खुद करते थे , फिर धीरे धीरे चार बेटो की जिम्मेदारी बढ़ गयी , तो हमने काम वाली बाई रखने का फैसला लिया । पर उसकी रोज रोज की छुटियों से हम परेशान रहने लगी ।


 एक दिन सासु माँ ने भी बिस्तर पकड़ लिया । और रोज़ रोज़ की काम की झिक झिक सी रहने लगी तब मैंने तय किया कि सभी लोग अपना नाश्ता और खाना निपटा कर अपने बर्तन खुद मांज ले तो काफी सुकून हो जाएगा ......


 हाँ ! लेकिन खाना बनाने वाले बर्तन मैं खुद ही मांजती हूँ , बाकी सब अपने खुद । मैंने घर के और भी काम बाटने चाहे थे , पर बच्चों की पढ़ाई में व्यस्तता को देखते हुए नही कर पाई , 


कभी - कभी मेरी तबियत ठीक नही होने के कारण बच्चे अपने कपड़े भी खुद धोने लगे थे , रोज़ रोज़ उनके लिए भी ये मुश्किल था तो इसीलिये मशीन लेनी पड़ी , पर आज भी बच्चे अपने अंडर गारमेंट्स खुद ही धोते है ,


 रीत ने ध्यान किया कि वो भी जब से इस घर मे आयी है उसने कभी बाथरूम में रोहित के कपड़े नही देखे । नही तो ये आम है , घर के मर्द नहाकर निकले नही , 


कि औरतों को उनके कपड़े धोने के लिए वही का रुख करना पड़ता है , और हां मैने अपने सब बच्चो को रसोई का इतना काम तो सिखा ही रखा है कि वो एक दो टाइम बिना किसी परेशानी के खाना बना सकते है , और हमे खिला भी सकते है ...... 


अब तुम्हे भी !! कहते हुए सासु माँ ने मुस्कुराते हुए रीत को देखा , फिर कहने लगी कि तुम्हे ये जानकर और भी आश्चर्य होगा जहां आज कल के दौर में भी कोई माँ अपने लड़को से रसोई का काम करना उसकी बेइज्जती समझती है , मेरी सासु माँ ने इसका पूरा समर्थन किया था ।


आज रीत के सारे भ्रम दूर हो गए थे , जो शादी के नाम से ही उसके भीतर उसके अपनो ने ही पैदा कर दिए थे , जिसके कारण वो पिछले कितने ही महीनों से ढंग सो भी नही पायी थी । उन्होंने कहा मेरा मानना सिर्फ यही है .... 


कि केवल बेटियो को ही ससुराल के लिए तैयार न करे , बल्कि बेटो को भी भविष्य में किसी और की बेटी के लिए तैयार करे अगर आप उसका कदम से कदम मिला कर चलना उसका नौकरी करना पसंद करते है तो घर के काम मे भी उसका सहयोग करे जैसे वो आपका सहयोग करती है ।।


बहुत छोटी सी ही बात है लेकिन घर के काम तो दोनों को ही सिखाये जाने चाहिये , जब लड़कियों को इसीलिए पढ़ाया जाता है कि भले वो भविष्य में नौकरी करे या न करे , 


लेकिन आवश्यकता पड़ने पर वो इतनी समर्थ हो कि उसे मजबूर न होना पड़े या किसी का मोहताज न रहना पड़े , तो फिर लड़को को केवल एक ही शिक्षा क्यो ,जबकि घर का काम तो जब तक जीवन है करना ही पड़ता  है ।।

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