सरप्राइज(स्वाभिमान)
सरप्राइज
मोहनबाबू ने कमरे में घुसते ही कहा....
*सरप्राइज.. सरप्राइज*
क्या सरप्राइज है पापा ?? सुमित उत्सुकता से बोला
सुमित और तान्या .ये लो बगल वाली सोसायटी में 2BHK फ्लैट तुम्हारे लिये,
व्हाट....?
ये आप क्या कह रहे हैं ?
पापा.....
हमारे लिए अलग से फ्लैट...?
हम यहां खुश है पापा
क्युं तान्या .....
हां पापा... सुमित सही कह रहा है,
मुझे यहां कोई दिक्कत नहीं है तान्या बोली
इससे पहले मोहनबाबू कुछ बोलें सुमित बीच में बोल पडा और पापा ! हर मां बाप चाहते हैं, कि उनकी औलाद उनके पास रहे तो आपकी ये अलग फ्लैट वाली बात
और इतने पैसे कहां से आए आपके पास ??
बेटा बात ऐसी है, तुम्हारी शादी के लिए.. बहुत कुछ जोड़कर रखा था, तुम हमारे इकलौते बेटे जो ठहरे ।
बडे अरमान थे. ये करूंगा वो करुंगा ....सब धरे के धरे रह गए, क्योंकि तुमने लव मैरिज जो कर ली, तो शादी के तामझाम में होनेवाला मेरा खर्चा बच गया, तो उसीसे तुम दोनों के लिए एक फ्लैट.
तुम दोनों कमाते हो, दोनों सुबह आँफिस निकल जाते हो,
EMI है कुछ सालों की, भर दिया करना, और कल को बच्चे होगे, तो उनके भविष्य के लिए.. अपना मकान होना बडी बात होगी..।
लो संभालो पेपर्स
कहकर मोहनबाबू ने पेपर्स सुमित और तान्या को दे दिए...
आखिर दोनों ने पहले तो ना नुकुर की, मगर जब.. मोहनबाबू जिद पर अडे रहे, तो अलग फ्लैट में रहने के लिए राजी हो गए, अपना समान लिए बगल वाली सोसायटी में शिफ्ट हो गए, उसी
रात सुधा ने मोहनबाबू से पूछा .....एक बात पूछूं....??
हां पूछो ना सुधा .....
ये अलग फ्लैट दिलाने की....
मेरा मतलब..
आपको तो.. सुमित की पसंद भी स्वीकार थी, फिर तान्या को अपने से दूर करने की बात.... मुझे कुछ अटपटी सी लग रही है...
सुधा ....अटपटी सी बात जरूर है
मगर.. बात बडी गहरी है ,
जानती हो सुधा ....बचपन से तुमने.. सुमित की हर तमन्नाओं को.. गैर जरूरी इच्छाओं को.. हर बार पूरा किया मेरे मना करने के बावजूद .....इससे वह थोड़ा अडियल जिद्दी सा हो गया था,
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अपनी मनमर्जी करना, यहां तक की.. उसने हमारे बिना पूछे.. हमारे बिना देखे.. एक अलग ही समाज की लडकी से.. गुपचुप शादी तक कर ली.....
बच्चे बडे होकर अपने जिंदगी के फैसले खुद लेते हैं, ठीक है मगर.. क्या हम दोनों.. उसके दुश्मन थे ? जो हमें बताना भी मुनासिब नहीं समझा...
खैर.. मैं उसका यहां भी बचपना समझकर चुप कर गया, बहु को स्वीकार किया, बेटी की तरह मान दिया।
मगर उसने...यहां आकर हमें अपनाया... नहीं ! ब्लकि वो तुम्हें और मुझे.. एक सर्वेंट समझने लगी थी.....
स्वयं से कभी चाय नही बनाकर पिलाई
.....आँफिस जाते समय ....मम्मी आज राजमा चावल.... आलू गोभी ....कभी ये कभी वो
....और वो नालायक सुमित ....उसे भी शायद हम दोनों नौकर ही लगने लगे थे ....मुझे तो आदत है बाहर से समान वगैरह लेकर आने की मगर तुम्हें ....अब हम बूढे हो रहे है सुधा और बुढापे मे हर मां बाप अपने बेटे बहुओं से उम्मीद करते हैं वो उनके लिए जिए उनके साथ जिए यहां तो तुम्हारे साथ जरा सा नमक तेज होने पर बदतमीजी होने लगी थी ....उस दिन टीवी देखते हुए अचानक तान्या ने टीवी बंद कर दिया था बिजली बिल बढ जाएगा कहकर ...अरे अपने घर में अपने टीवी
मगर .....ये सब करना जरुरी था क्या??.....
सुधा .....जब मरीज डायबिटीज का हो तो उसे करेले का जूस देकर ठीक किया जाता है मीठी मीठी जलेबी नहीं देते .....और वैसे भी कहीं दूर नही भेजा उन्हें पास की सोसायटी में रहेंगे तो हम उनके आसपास ही तो रहेंगे कल यदि वह अपनी गलतियों से सीखकर हमारे साथ रहना चाहेंगे तो कुछ शर्तों के साथ उन्हें साथ मे भी रखेंगे .....
और यदि वह अपने स्वभाव में बदलाव नहीं करते तो ...सुधाजी ने प्रश्न दागते हुए कहा
तो.....हम दोनों तो है ना ....पहले भी थे आज भी है ....साथ खाऐंगे .....रहेंगे ....मगर स्वाभिमान के साथ ...
*इस बार सुधा जी भी.. मोहनबाबू के साथ साथ मुस्कुरा उठी।*
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