जीवन का सूत्र


 *भीष्म चुप रहे , कुछ क्षण बाद बोले," पुत्र युधिष्ठिर का राज्याभिषेक करा चुके केशव ... ?*

*उनका ध्यान रखना , परिवार के बुजुर्गों से रिक्त हो चुके राजप्रासाद में उन्हें अब सबसे अधिक तुम्हारी ही आवश्यकता है" .... !*


*कृष्ण चुप रहे .... !*


*भीष्म ने पुनः कहा ,  "कुछ पूछूँ केशव .... ?*

*बड़े अच्छे समय से आये हो .... !*

*सम्भवतः धरा छोड़ने के पूर्व मेरे अनेक भ्रम समाप्त हो जाँय " .... !!*


*कृष्ण बोले - कहिये न पितामह ....!*


*एक बात बताओ प्रभु !  तुम तो ईश्वर हो न .... ?*


*कृष्ण ने बीच में ही टोका ,  "नहीं पितामह ! मैं ईश्वर नहीं ...  मैं तो आपका पौत्र हूँ पितामह ... ईश्वर नहीं ...."*


*भीष्म उस घोर पीड़ा में भी ठठा के हँस पड़े .... !  बोले , " अपने जीवन का स्वयं कभी आकलन नहीं कर पाया कृष्ण , सो नहीं जानता कि अच्छा रहा या बुरा , पर अब तो इस धरा से जा रहा हूँ कन्हैया , अब तो ठगना छोड़ दे रे .... !! "*


*कृष्ण जाने क्यों भीष्म के पास सरक आये और उनका हाथ पकड़ कर बोले ....  " कहिये पितामह .... !"*


*भीष्म बोले , "एक बात बताओ कन्हैया !  इस युद्ध में जो हुआ वो ठीक था क्या .... ?"*


*"किसकी ओर से पितामह .... ?  पांडवों की ओर से .... ?"*


*" कौरवों के कृत्यों पर चर्चा का तो अब कोई अर्थ ही नहीं* *कन्हैया !  पर क्या पांडवों की ओर से जो हुआ वो सही था .... ?*  *आचार्य द्रोण का वध , दुर्योधन की जंघा के नीचे प्रहार , दुःशासन की छाती का चीरा जाना , जयद्रथ और द्रोणाचार्य के साथ हुआ छल , निहत्थे कर्ण का वध , सब ठीक था क्या .... ?* *यह सब उचित था क्या .... ?"*


*इसका उत्तर मैं कैसे दे सकता हूँ पितामह .... !*

*इसका उत्तर तो उन्हें देना चाहिए जिन्होंने यह किया ..... !!*

*उत्तर दें दुर्योधन, दुःशाशन का वध करने वाले भीम , उत्तर दें कर्ण और जयद्रथ का वध करने वाले अर्जुन*  .।


*मैं तो इस युद्ध में कहीं था ही नहीं पितामह .... !!*


*"अभी भी छलना नहीं छोड़ोगे कृष्ण .... ?*

*अरे विश्व भले कहता रहे कि महाभारत को अर्जुन और भीम ने जीता है , पर मैं जानता हूँ कन्हैया कि यह तुम्हारी और केवल तुम्हारी विजय है .... !*

*मैं तो उत्तर तुम्ही से पूछूंगा कृष्ण .... !"*


*"तो सुनिए पितामह .... !*

*कुछ बुरा नहीं हुआ , कुछ अनैतिक नहीं हुआ .... !*

*वही हुआ जो हो होना चाहिए .... !"*


*"यह तुम कह रहे हो केशव .... ?*

*मर्यादा पुरुषोत्तम राम का अवतार कृष्ण कह रहा है ....?  यह छल तो किसी युग में हमारे सनातन संस्कारों का अंग नहीं रहा, फिर यह उचित कैसे गया ..... ? "*


*"इतिहास से शिक्षा ली जाती है पितामह , पर निर्णय वर्तमान की परिस्थितियों के आधार पर लेना पड़ता है .... !*


*हर युग अपने तर्कों और अपनी आवश्यकता के आधार पर अपना नायक चुनता है .... !!*

*राम त्रेता युग के नायक थे , मेरे भाग में द्वापर आया था .... !*

*हम दोनों का निर्णय एक सा नहीं हो सकता पितामह .... !!"*


*" नहीं समझ पाया कृष्ण ! तनिक समझाओ तो .... !"*


*" राम और कृष्ण की परिस्थितियों में बहुत अंतर है पितामह .... !*

*राम के युग में खलनायक भी ' रावण ' जैसा शिवभक्त होता था .... !!*

*तब रावण जैसी नकारात्मक शक्ति के परिवार में भी विभीषण, मंदोदरी, माल्यावान जैसे सन्त हुआ करते थे ..... !*  *तब बाली जैसे खलनायक के परिवार में भी तारा जैसी विदुषी स्त्रियाँ और* *अंगद जैसे सज्जन पुत्र होते थे .... !*  *उस युग में खलनायक भी धर्म का ज्ञान रखता था .... !!*

*इसलिए राम ने उनके साथ कहीं छल नहीं किया .... ! किंतु मेरे युग के भाग में में कंस ,* *जरासन्ध , दुर्योधन , दुःशासन , शकुनी , जयद्रथ जैसे घोर पापी आये हैं .... !! उनकी समाप्ति के लिए हर छल उचित है* *पितामह .... ! पाप का अंत* *आवश्यक है पितामह , वह चाहे जिस विधि से हो .... !!"*


*"तो क्या तुम्हारे इन निर्णयों से गलत परम्पराएं नहीं प्रारम्भ होंगी केशव .... ?*

*क्या भविष्य तुम्हारे इन छलों का अनुशरण नहीं करेगा .... ?*

*और यदि करेगा तो क्या यह उचित होगा ..... ??"*


*ॐॐॐॐॐॐॐ*


*" भविष्य तो इससे भी अधिक नकारात्मक आ रहा है पितामह .... !*


*कलियुग में तो इतने से भी काम नहीं चलेगा .... !*


*वहाँ मनुष्य को कृष्ण से भी अधिक कठोर होना होगा ....  नहीं तो धर्म समाप्त हो जाएगा .... !*


*जब क्रूर और अनैतिक शक्तियाँ  सत्य एवं धर्म का समूल नाश करने के लिए आक्रमण कर रही हों,  तो नैतिकता अर्थहीन हो जाती है पितामह* .... !

*तब महत्वपूर्ण होती है धर्म की विजय , केवल धर्म की विजय .... !*


*भविष्य को यह सीखना ही होगा पितामह* ..... !!"


*"क्या धर्म का भी नाश हो सकता है केशव .... ?*

*और यदि धर्म का नाश होना ही है , तो क्या मनुष्य इसे रोक सकता है ..... ?"*


*"सबकुछ ईश्वर के भरोसे छोड़ कर बैठना मूर्खता होती है पितामह .... !*


*ईश्वर स्वयं कुछ नहीं करता ..... !*केवल मार्ग दर्शन करता है*


*सब मनुष्य को ही स्वयं  करना पड़ता है .... !*

*आप मुझे भी ईश्वर कहते हैं न .... !*

*तो बताइए न पितामह , मैंने स्वयं इस युद्घ में कुछ किया क्या ..... ?*

*सब पांडवों को ही करना पड़ा न .... ?*

*यही प्रकृति का संविधान है .... !*

*युद्ध के प्रथम दिन यही तो कहा था मैंने अर्जुन से .... ! यही परम सत्य है ..... !!"*


*भीष्म अब सन्तुष्ट लग रहे थे......उनकी आँखें धीरे-धीरे बन्द होने लगीं थी .... !*

*उन्होंने कहा - चलो कृष्ण ! यह इस धरा पर अंतिम रात्रि है .... कल सम्भवतः चले जाना हो ... अपने इस अभागे भक्त पर कृपा करना कृष्ण .... !"*


*कृष्ण ने मन मे ही कुछ कहा और भीष्म को प्रणाम कर लौट चले , पर युद्धभूमि के उस डरावने अंधकार में भविष्य को जीवन का सबसे बड़ा सूत्र मिल चुका था* .... !


*जब अनैतिक और क्रूर शक्तियाँ  सत्य और धर्म का विनाश करने के लिए आक्रमण कर रही हों, तो नैतिकता का पाठ आत्मघाती होता है ....।।*


*धर्मों रक्षति रक्षितः

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