संदेश

दिसंबर, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

जिंदगी

 *बेटा- बहू के बिन ज़िंदगी*  बात उन दिनों की है जब मैं लखनऊ में रहती थी। मेरे बगल में ही शीतला रानी आंटी रहती थीं। जब मैं शाम को बच्चे को टहलाने या सब्ज़ी लेने जाती तो अक्सर ही उनसे मुलाकात हो जाती।  और वो पूछ लेतीं,कैसी हो बेटा जी? क्या करती हो? बच्चे कैसे हैं? हस्बैंड कैसे हैं? क्या करते हैं? उनसे बातें करके ऐसा महसूस होता मानो वो बात करने वाला कोई व्यक्ति ढ़ूॅंढ़ती रहती हैं। इस तरह दो, चार, पाॅंच मिनट की बात क़रीब-क़रीब रोज़ ही आंटी से हो जाया करती। एक दिन जब मैं शाम को बच्चे को टहलाने के लिए पार्क में गई तो आंटी भी वहाॅं बैठी हुई थीं। उन्होंने मुझसे अपने घर चलने को कहा,मैं मना न कर सकी और  उनके घर गई। उन्होंने ताला खोला और मुझे बड़े प्रेम से अंदर ले गईं। घर देखकर लग रहा था कि आंटी संपन्न हैं घर पूरी तरह से सज़ा- सॅंवरा था सारी चीजें घर में अत्याधुनिक और उच्च स्तर की थीं। मैं सोफे पर बैठ गई आंटी अंदर गईं और  मेरे लिए पानी लेकर आईं, और चाय रखने जा रही थीं कि मैंने उन्हें मना कर दिया,और  बोली बैठिए बातें करते हैं। बात करते-करते मैंने आंटी से कहा - आंटी मुझ...

कुछ किरदार

 कुछ किरदार हमेशा नेपथ्य में ही रहे............  मंझली बुआ नहीं पूछी गई किसी काज में जबकि हर काज की सफलता  उन पर ही निर्भर रही.... रसोई में जुटी रही जाने कितने पहर, चूल्हे की गीली लकड़ियों में...... किलो किलो रोटियां सेकती और सराहे जाते परोसने वाले हाथ, बिन ब्‍या‍ही लड़कियां ऐसे ही जिये जाती हैं….  बड़ी मौसी को कभी आतिथ्‍य न मिला मैके में,  जबकि परिवार की धुरी रही सदा….  गाती बजाती, चु‍टकियों में काम निपटाती.  सदा बिन बुलाये ही चली आती,  अपना मैके बचाये रहती….  आदमी का निठल्‍लापन भुगतती रहती…..  बडके चाचा कोल्‍हू के बैल थे….  बाजार-खेत का हर बोझ था उनके जिम्‍मे, तन-मन-धन सब लुटाते रहे   फिर भी सदा निखट्टू ही समझे गये,  सर झुकाये बातें सुनते…..  और अपनी सरलता का दाम चुकाते रहे जीवन भर…..  बिन घरनी का घर चलाते रहे….. छोटी मामी परदे से ही न उबर पाई कभी,  खुद को छुपाये रहती हर मौके पर,  लोगों की सवांलिया निगाहों  से….  न रो पाती, न हंस पाती जी भर के….  बच्‍चे न जन पाने का बोझ उठाती रही जीव...

असल साहस

 आत्महत्या हल्की-फुल्की रोज़मर्रा की नोक-झोक ने आज विराट रूप ले लिया था. रोहित और निधि का झगड़ा आज इतना बढ़ चुका था की चुपचाप निधि दस मंजिल की छत से कूदकर आत्महत्या करने को चल दी. निधि नीचे कूदने ही वाली थी की पीछे से उसी बिल्डिंग के वॉचमैन की पत्नी लक्ष्मी अचानक वहां आ धमकी. निधि उसे देख तुरन्त वापस ऐसे खड़ी हो गई जैसे वो यूं हीं छत पर टहलने आई हो, लेकिन लक्ष्मी ने सब देख लिया और वह सब समझ गई. तभी लक्ष्मी बोली, "अरे दीदी, आप अपना काम करो. मैं तो पानी की टंकी देखने आई थी, पता नहीं कहां से लीक हो रही है? आप मुझे देखकर क्यों रुक गई? आप जाओ कूदो." ये कहती हुई वह सीढ़ी से नीचे उतरने को हुई. निधि फिर से सुसाइड करने के लिए बढ़ी. लक्ष्मी फिर से पीछे की तरफ़ लौटती हुई बोली, "दीदी… दीदी… एक मिनट हां, बस एक मिनट जाते-जाते मेरा एक काम कर दो आप." निधि, "क्या काम?" लक्ष्मी, "दीदी, भगवान के घर जा रही हो, तो एक संदेश दे देना उनको मेरा." "बहुत दिनों से मैं बीमार चल रही हूं, डॉक्टर साहब ने कहा है कि मैं कभी भी मर सकती हूं, मेरे बच्चे दिन-रात मेरी ज़िंदगी के लिए ईश्व...

परिवार की नींव

चित्र
 खुद को सेकंड हैंड समझती औरतें आज चेतन दोपहर में लंच के लिए नहीं आनेवाला। 10 बजे ही उसने फ़ोन करके वंदना को बताया। वंदना ने सोचा चलो आज रसोई नहीं है तो कुछ एक्स्ट्रा काम कर लेती हूँ। आप सोच रहे होंगे रसोई क्यों नहीं है? पहले से बन गई है? अरे  नहीं आज वंदना अकेली है खाने में तो खुद के लिए खाना थोड़े ना बनायेगी। उसका का काम तो मैगी से चल जाएगा। वो तो भला हो चेतन का जो रोज़ दोपहर में खाना खाने घर आता है वरना वंदना रानी रोज मैगी या पोहे से ही दोस्ती कर लें। उसे लगता है अब अकेले के लिए क्या बनाना?  यही वंदना जब कहीं बाहर जानेवाली होती है और चेतन अकेला होता है तो दाल चावल सब्जी रोटी पूरा खाना बनाकर डाईनिंग टेबल सजाकर जाती है। क्यों? अरे भाई पति है उसका भूखे थोड़ी ना रख सकती है। आइए दूसरा किस्सा दिखते हैं। राहुल और नीना अपने बेटे के साथ बाहर जा रहे हैं। राहुल ड्राइविंग सीट पर है और नीना भी सजधजकर आई। राहुल का बेटा जो कि 13 साल का है वो आगे अपने पापा के पास बैठ गया। राहुल ने बेटे से कहा "तुम पीछे बैठो, मम्मा को आगे बैठने दो।" नीना कूद पड़ी बीच में " अरे जाने दो ना राहुल। क्या फर्क पड़...

ससुराल वालों का हक

चित्र
 * बहु इन गिफ्ट्स पर तो ससुराल वालों का हक है* आज मनोज जी के दोस्त का परिवार डिनर पर आमंत्रित था। बहू गौरी से मिलने वो लोग आ रहे थे। काफी सालों पहले वो लोग बेंगलुरु शिफ्ट हो गए थे। और कुछ दिनों के लिए वापस इस शहर आए हैं। इसलिए सास वृंदा जी खुद अपनी देखरेख में बहु से सारी तैयारी करवा रही थी। अभी तीन महीने पहले ही गोरी इस घर की बहू बनी है। थोड़ी देर बाद मेहमान घर आ गए। गौरी ने उनके उनका बहुत अच्छे से स्वागत किया। चाय पानी के बाद उन लोगों ने गौरी के हाथ में अपना लाया हुआ तोहफा रखा। आखिर वो लोग उससे पहली बार मिल रहे थे। तोहफा बहुत ही सुंदर तरीके से पैक किया हुआ था। गौरी ने तोहफा ले जाकर अपने कमरे में रख दिया।  कुछ देर बातचीत करने के बाद सबने खाना खाया।उन लोगों ने भी गौरी के बनाए हुए खाने की दिल खोलकर तारीफ की। थोड़ी देर बाद वो लोग घर से रवाना हो गए।  उनके जाने के बाद गौरी रसोई की साफ सफाई करने चली गई। साफ सफाई कर जब अपने कमरे में गई तो नितिन अभी जगा हुआ था। गौरी को देखते ही उसने पूछा,  " क्या तुम भी काम में लगी हुई हो। थोड़ा वक्त मेरे लिए भी निकाल लो" उसकी बात सुनकर गौरी...

सोच बदलो समाज बदलेगा

चित्र
 मान लो कि आपके गांव में 100-200 घर हैं... जिसमें से 4-5 घर आपसे अच्छे और खूबसूरत हैं... तथा, बाकी के 194 घर आपसे खराब हैं... लेकिन, आप चाहते हैं कि... उस गांव का सर्वश्रेष्ठ घर आपका ही हो... तो फिर... आपके पास दो उपाय है... या तो, आप डायनामाइट लगा कर अपने से अच्छे और खूबसूरत उन चारो-पांचों घर को ढहा दो... या फिर... अपने घर को पुनर्रचना करके सर्वश्रेष्ठ घर बना लो... हालांकि... लक्ष्य दोनों तरीकों से उपलब्ध हो जाना है... लेकिन, इन दोनों तरीकों में एक तरीका रचनात्मक सोच का तरीका है... और, दूसरा विनाशात्मक सोच का... अरे हाँ... सोच से याद आया कि... मान लो कि... किसी होटल के बाहर बोर्ड पर "शुद्ध वैष्णव होटल" लिखा हो और अंदर टेबल पर मीट- मुर्गा- मछली आदि भी परोसा जाता रहे तो फिर आपकी सोच क्या होगी? या फिर, एक दूसरे होटल में वैष्णव होटल न लिखा रहे लेकिन वो हमेशा शुद्ध और सात्विक भोजन ही खिलाए तो फिर आपकी सोच क्या होगी? जाहिर सी बात है कि... आप बाहर लिखे बोर्ड की अपेक्षा खाने की गुणवत्ता पर ज्यादा ध्यान दोगे... और, अगर आप सात्विक भोजन पसंद करते हैं तो हमेशा दूसरे वाले होटल में ही जान...

मैं भारत हूं

 .     ~  मैं भारत हूँ  ~   ★  मैं वह भारत हूँ जिसने       पिछले पाँच हजार वर्ष में      कभी अपने किसी बेटे का नाम     दुशासन नहीं रखा, क्योंकि उसने       एक स्त्री का अपमान किया था. ★        मैं वह भारत हूँ जो कभी               अपने बच्चों को   रावण, कंस नाम नहीं देता, क्योंकि         इन्होंने अपने जीवन में               स्त्रियों के साथ            दुर्व्यवहार किया था. ★   मैं वह भारत हूँ जहाँ कोई गांधारी  अपने सौ पुत्रों की मृत्यु के बाद भी द्रौपदी पर क्रोध नहीं करती, बल्कि   अपने बेटों की असभ्यता के लिए           क्षमा माँगती है. ★              मैं वह भारत हूँ जहाँ      99% बलात्कारियों को अपना गाँव       ...

अटूट विश्वास

चित्र
 ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास...... एक आस्तिक(जो ईश्वर को मानते है ) और दुसरे नास्तिक(जो ईश्वर को नहीं मानते है।) अगर देखा जाये तो दुनिया में दो प्रकार के लोग होते है – नास्तिक होना भी तब तक बुरा नही है जब तक कि आप दुसरे की भावनाओं को ठेस ना पहुचायें। आस्तिक लोगों में एक अलग ही प्रकार की शक्ति होती है, जिसे श्रृद्धा और विश्वास की शक्ति कहा जा सकता है। फिर चाहे वो किसी भी ईश्वर, मजहब या देवी – देवता को मानते हो । अगर आपके पास ईश्वर विश्वास की ताकत है तो आप इस दुनिया के सबसे खुशहाल व्यक्ति हो सकते है। क्योंकि जिसको ईश्वर में विश्वास होता है, उसी को ईश्वर की प्रेरणा होती है । इसे हम एक छोटी सी कहानी से समझेंगे – समझे आत्मा का संकेत – जो की ईश्वर की प्रेरणा है। एक बार एक बूढी माता माथे पर कपड़े व गहनों की गठरी और साथ में छोटी सी बेटी को लेकर एक गाँव से दुसरे गाँव जा रही थी। चलते चलते वह कुछ ही दूर पहुँची होगी कि पीछे से एक घुड़सवार आया। घुड़सवार को अकेला देख बूढी माता ख़ुशी से बोली – “ बेटा ! आज बहुत धुप है और गर्मी भी बहुत है, यदि तुझे कोई आपत्ति ना हो तो इस गठरी और मेरी बेटी को अपने घोड़े ...