ससुराल वालों का हक
* बहु इन गिफ्ट्स पर तो ससुराल वालों का हक है*
आज मनोज जी के दोस्त का परिवार डिनर पर आमंत्रित था। बहू गौरी से मिलने वो लोग आ रहे थे। काफी सालों पहले वो लोग बेंगलुरु शिफ्ट हो गए थे। और कुछ दिनों के लिए वापस इस शहर आए हैं। इसलिए सास वृंदा जी खुद अपनी देखरेख में बहु से सारी तैयारी करवा रही थी। अभी तीन महीने पहले ही गोरी इस घर की बहू बनी है।
थोड़ी देर बाद मेहमान घर आ गए। गौरी ने उनके उनका बहुत अच्छे से स्वागत किया। चाय पानी के बाद उन लोगों ने गौरी के हाथ में अपना लाया हुआ तोहफा रखा। आखिर वो लोग उससे पहली बार मिल रहे थे। तोहफा बहुत ही सुंदर तरीके से पैक किया हुआ था। गौरी ने तोहफा ले जाकर अपने कमरे में रख दिया।
कुछ देर बातचीत करने के बाद सबने खाना खाया।उन लोगों ने भी गौरी के बनाए हुए खाने की दिल खोलकर तारीफ की। थोड़ी देर बाद वो लोग घर से रवाना हो गए।
उनके जाने के बाद गौरी रसोई की साफ सफाई करने चली गई। साफ सफाई कर जब अपने कमरे में गई तो नितिन अभी जगा हुआ था। गौरी को देखते ही उसने पूछा,
" क्या तुम भी काम में लगी हुई हो। थोड़ा वक्त मेरे लिए भी निकाल लो"
उसकी बात सुनकर गौरी मुस्कुराते हुए बोली,
" जी जनाब, जरूर। भला आपके लिए वक्त नहीं निकालेंगे तो किसके लिए निकलेंगे"
उसकी बात सुनकर नितिन हंस दिया और फिर बोला,
" लाओ भाई। अंकल आंटी क्या गिफ्ट देकर गए हैं नई नवेली बहू को, हम भी तो देखें। पैकिंग तो बड़ी सुंदर है"
" हां, मुझे भी उसे देखना है। वाकई पैकिंग तो बहुत सुंदर लग रही है। उसी समय खोलने का मन कर रहा था। पर फिर सोचा कि सब लोग क्या सोचेंगे कैसी बेसब्री बहू है"
कहते कहते गौरी गिफ्ट उठा कर ले आई। फटाफट गिफ्ट को खोल कर देखा तो उसमें एक बहुत ही सुंदर सा नेकलेस था। उसे देखते ही गौरी खुश हो गई। उसे हाथों में लेकर अपने गले पर लगाते हुए बोली,
" देखो, कितना सुंदर लग रहा है ना। वाकई अंकल आंटी बहुत अच्छा तोहफा देकर गए हैं। मुझे तो बहुत पसंद आया"
उसे खुश देखकर नितिन ने कहा,
" सचमुच, अंकल आंटी की चॉइस बहुत अच्छी है। नेकलेस बहुत सुंदर है"
" इसे तो मैं दस दिन बाद मेरे चचेरे भाई की शादी में पहनूंगी। सचमुच मेरी कजिन्स देखते रह जाएगी"
गौरी नेकलेस को देखते हुए बोली।
" हां हां मैडम, पहन लेना। फिलहाल तो सो जाओ। रात काफी हो चुकी है"
नितिन ने कहा तो गौरी ने गिफ्ट अलमारी में रख दिया। और आकर सो गई।
दूसरे दिन सुबह मनोज जी और नितिन अपना नाश्ता वगैरह करके अपने-अपने ऑफिस रवाना हो गए। इधर गोरी भी अपना काम खत्म कर अपने कमरे में आ गई। इतने में वृंदा जी उसके कमरे में आ गई और आते ही बोली,
" अरे बहु तुमने बताया नहीं कि कल अंकल आंटी तुम्हें क्या गिफ्ट देकर गए"
उन्हें देखते ही गौरी बोली,
" हाँ मम्मी जी, बैठिए ना मैं आपको अभी गिफ्ट दिखाती हूं"
कहती भी गौरी उठकर अलमारी खोलने लगी और अलमारी में से गिफ्ट निकाल कर बाहर ले आई। और उसे वृंदा जी को दिखाते हुए बोली,
" देखिए तो मम्मी जी, अंकल आंटी मुझे कितना सुंदर गिफ्ट देकर गए हैं। कितना प्यारा नेकलेस है। इसे तो मैं दस दिन बाद अपने कजिन की शादी में पहनूंगी"
वृंदा जी ने हाथ में नेकलेस लेकर उसे आगे पीछे, ऊपर नीचे घुमा फिरा कर अच्छी तरह से देखा और फिर बोली,
" इसे वापस इस बॉक्स में रख दो"
उनके कहे अनुसार गौरी ने नेकलेस वापस बॉक्स में रख दिया और अलमारी में बॉक्स रखने के लिए लेकर जाने लगी। तो वृंदा जी बोली,
" अरे! इसे कहां लेकर जा रही हो। इसे तो मैं अपने कमरे में लेकर जा रही हूं"
उनकी बात सुनकर गौरी हैरानी से उनकी तरफ देखने लगी। से यूँ हैरानी से खड़ा देखकर वृंदा जी बोली,
" अरे! ऐसे क्या शक्ल देख रही है। तुझे इतना भी नहीं पता कि मुंह दिखाई में आए हुए शगुन के पैसे और गिफ्ट पर ससुराल वालों का हक होता है। ये तो हमारा व्यवहार था जिसके कारण तुझे गिफ्ट मिल रहे हैं। पिछले तीन महीने से मैं इंतजार कर रही हूं कि तू अपने आप ही मुझे लाकर दे दे लेकिन ये संस्कार तो तेरे मम्मी ने तुझे सिखाये नहीं। इसलिए सास होने के नाते मुझे अब बोलना ही पड़ा"
वृंदा जी की बात सुनकर गौरी चौंक गई। उसके हाथ से नेकलेस लेते हुए वृंदा जी ने एक पर्ची गौरी के हाथ में थमा दी। और कहने लगी,
" ये पिछले तीन महीने में तेरे पास हमारी रिश्तेदारी और व्यवहार की तरफ से आए हुए शगुन के पैसे और गिफ्ट की पर्ची है। मैंने सब कुछ लिख कर रख लिया था, ताकि मुझे याद रहे। अब तू ये तोहफे निकाल कर मेरे कमरे में ला दे। मैं अपने कमरे में जा रही हूं"
कह कर वृंदा जी गौरी के कमरे से निकल गई। और अपने कमरे में चली गई। गौरी काफी देर तक वैसे ही खड़ी उसे पर्ची को देखते रही। और मन ही मन सोचने लगी,
" हे भगवान! ऐसी भी सास होती है भला"
लेकिन बात स्वाभिमान की थी। जब आगे होकर खुद वृंदा जी ने ही गिफ्ट मांग लिए तो भला गौरी कैसे मना करती। इसलिए उसने पर्ची को खोलकर देखा। जो जो गिफ्ट्स उसमें लिखे हुए थे वो सारे गिफ्ट्स उसने इकट्ठे किए। शगुन के पैसे भी कुल मिलाकर के पाँच हजार दो सौ इक्यावन रुपए थे।
पर उसके पास अभी इतने पैसे थे नहीं। इसलिए जो पैसे थे उन्हें इकट्ठे किए और एक बैग में रख लिए। तीन हजार रुपए के लगभग उसके पास पैसे निकल कर आ गए। बाकी के पैसे उसने नितिन की अलमारी से निकाले और उन पैसों में मिला लिए।
सारे गिफ्ट्स के साथ वो पैसे लेकर वृंदा जी के कमरे में चली गई। वो सारा सामान उनके पलंग पर रखते हुए बोली,
" मम्मी जी ये रहे सारे गिफ्ट्स और शगुन के पैसे। एक बार आप चेक कर लीजिए"
उसकी बात सुनकर वृंदा जी ने उस बैग को अपने पलंग पर खाली किया और वो पर्ची गौरी से ले ली। फिर एक-एक करके सामान का मिलान अपनी पर्ची के साथ करने लगी। एक-एक समान को उठाकर ढंग से चेक कर रही थी कि कहीं कोई टूट तो नहीं गया। जब तक वो सामान का मिलान करती रही तब तक गौरी वही खड़ी रही। आखिर सारे सामान का मिलान हो जाने के बाद वृंदा जी बोली,
" ठीक है बहू, सारा सामान है इसमें। अब मैं इसे रख दूंगी। तू जा"
उनकी बात सुनकर गौरी वहां से निकल गई और अपने कमरे में आ गई। शाम को जब नितिन आया तो उसने उसे बता दिया कि उसने कुछ पैसे उसके अलमारी से निकले थे। उसकी बात सुनकर नितिन बोला,
" तो मैडम आज कहां घूमने गई थी आप। और क्या शॉपिंग करके लाई हो। बताओ तो सही"
उसकी बात सुनकर गौरी उसकी तरफ देखते हुए बोली,
"कहीं गई नहीं थी। बल्कि मम्मी जी को बाकी के पैसे देने के लिए चाहिए थे"
उसकी बात सुनकर नितिन हैरान होते हुए बोला मम्मी को बोला,
" मम्मी को? बाकी के पैसे? क्या मतलब? कौन से बाकी के पैसे?"
" वही जो शादी के बाद आप लोगों के रिश्तेदार और दोस्त मुझे मुंह दिखाई में देकर गये थे"
गौरी ने जवाब दिया तो नितिन अपना सिर खुजलाते हुए बोला,
" मुझे अभी भी समझ में नहीं आया कि तुम क्या कह रही हो"
तब गौरी ने बोली,
" मम्मी जी के अनुसार शादी के बाद आपके परिवार, रिश्तेदार, दोस्तों की तरफ से कोई भी तोहफा जो मुझे मिला है, उस पर ससुराल वालों का हक है। क्योंकि वो सब उनके व्यवहार के कारण मिले थे। तो आज उन्होंने सारे तोहफे और शगुन के सारे पैसे मांगे थे। जिसकी उन्होंने मुझे लिस्ट भी बना कर दी थी। तो उसी में कुछ पैसे कम पड़ गए। इसलिए आपकी अलमारी में से निकालकर उसमे मिलाकर दे दिए। अब आपको भी आपके बचे हुए पैसे चाहिए तो मेरे मायके से जब मुझे विदाई मिलेगी तो उसमें से दे दूंगी"
गौरी ने चुपचाप कहा और अपने काम में लग गई। सुनकर नितिन को बड़ी हैरानी हुई। उसने गोरी से कुछ नहीं कहा, पर उसने अपनी मम्मी के कमरे में जाकर उनसे बात की। तो वृंदा जी ने इस बात पर सहमति जताई,
" अरे तुझे इस बारे में कुछ भी नहीं पता इसलिए तू बीच में मत बोल। बहु को सारे तोहफे और शगुन हमारे व्यवहार के कारण ही तो मिले थे। मैं लोगों के घर में दे दे कर बैठी हूं तभी तो उन लोगों ने लौटाया है। इसलिए उन सब पर हमारा अधिकार है"
उनकी बात सुनकर नितिन बोला,
" चलो माना पैसे तो आप इस्तेमाल कर लोगी। पर आप इन तोहफों का करोगी क्या? ये तो गौरी के लिए आए हैं"
" क्यों? मैं इस्तेमाल नहीं कर सकती इन चीजों को। मैं भी तो एक औरत ही हूं। नेकलेस, बैग, ये साड़ियां तो मैं भी इस्तेमाल कर सकती हूं"
वृंदा जी ने कहा। उसके आगे नितिन कुछ नहीं बोला और अपने कमरे में आ गया। जानता था कि वृंदा जी नहीं समझेगी।
खैर, दस दिन बाद गौरी को अपने कजिन की शादी में जाना था। उसके एक दिन पहले नितिन ने उसे अपनी तरफ से शॉपिंग करवा दी। ज्यादा कुछ खरीदारी तो करना नहीं था क्योंकि तीन महीने पहले ही शादी हुई थी। सब सामान नया था।
लेकिन जब सबको दूसरे दिन शादी में रवाना होना था तो गौरी तो तैयार होकर बाहर आ गई लेकिन नितिन काफी देर तक बाहर नहीं आया। ये देखकर वृंदा जी बोली,
" बहु नितिन कहाँ है। उसे इतनी देर क्यों लग रही है। टाइम से जाएंगे तो ही तो टाइम से वापस आएंगे"
"पता नहीं मम्मी जी। तैयार तो हो चुके थे, अभी तक बाहर क्यों नहीं आए?"
गौरी ने कमरे की तरफ देखते हुए कहा।
" तो यहाँ खड़ी-खड़ी देख क्या रही हो? देर हो रही है। जाओ उसे बुलाकर लाओ"
" जी मम्मी जी"
कहकर गौरी कमरे की तरफ जाने लगी। इतने में नितिन बाहर आया। उसके हाथ में एक बैग था। उस बैग को देखकर वृंदा जी बोली,
" नितिन हम तो अभी जाएंगे और तीन-चार घंटे बाद वापस भी आ जाएंगे। फिर तू ये बैग क्यों लेकर जा रहा है"
उनकी बात सुनकर नितिन मुस्कुराया और बोला,
"मम्मी इसमें कुछ जरूरी सामान है जो मेरे ससुराल को मुझे लौटाना है"
उसकी बात सुनकर मनीष जी बोले,
" ऐसा क्या सामान है जो ससुराल वालों को लौटा रहा है"
नितिन ने उनकी तरफ देखते हुए कहा,
" पापा इसमें कुछ गिफ्ट्स हैं जो मुझे शादी के बाद मिले थे। और मैंने कैश भी रख लिया है जो मैं उन्हें लौटा कर आऊंगा"
उसकी बात सुनकर वृंदा जी को गुस्सा तो बहुत आया। वो समझ गई कि नितिन ये सब जानबूझकर कर रहा है। लेकिन मनीष जी सामने थे इसलिए कुछ बोल नहीं पाई। लेकिन इधर मनीष जी हैरान होते हुए बोले,
" ऐसे कौन से गिफ्ट्स है जो ससुराल वालों को लौटा रहा है। और गिफ्ट कभी लौटाए जाते हैं क्या? किसने अक्ल दे दी तुझे"
" मम्मी ने। मम्मी ने कहा है कि शादी के बाद बहू को जो भी गिफ्ट्स और शगुन मिलते हैं उस पर ससुराल वालों का हक होता है। क्योंकि ये उनके व्यवहार के कारण मिले हैं। तो मुझे भी शादी के बाद जो गिफ्ट्स और शगुन के पैसे मिले हैं, उस पर भी तो मेरे ससुराल वालों का हक है। आखिर ये सब उनके व्यवहार के कारण जो मुझे मिले हैं। आपकी बहू ने तो सारे गिफ्ट्स और शगुन लौटा दिए, पर मेरी भी तो जिम्मेदारी है। इसलिए सोचा कि जब जा रहा हूँ तो सामान लौटा भी आऊंगा"
उसकी बात सुनकर मनीष जी ने वृंदा जी की तरफ देखा तो वो नज़रें चुरा रही थी। मनीष जी ज्यादा कुछ नहीं बोले। बस इतना ही कहा,
' वृंदा थोड़ी सी समझदारी तुम भी दिखाओ। इन छोटे-मोटे सामान के पीछे अपना भविष्य खराब मत करो। बहू का सामान बहू के पास होना चाहिए। इसके आगे मैं कुछ नहीं सुनना चाहता"
आखिर वृंदा जी कुछ कह नहीं पाई। पर शादी से लौटने के बाद गौरी को उसका सामान वापस दे दिया गया।
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