परिवार की नींव


 खुद को सेकंड हैंड समझती औरतें


आज चेतन दोपहर में लंच के लिए नहीं आनेवाला। 10 बजे ही उसने फ़ोन करके वंदना को बताया। वंदना ने सोचा चलो आज रसोई नहीं है तो कुछ एक्स्ट्रा काम कर लेती हूँ। आप सोच रहे होंगे रसोई क्यों नहीं है? पहले से बन गई है? अरे  नहीं आज वंदना अकेली है खाने में तो खुद के लिए खाना थोड़े ना बनायेगी। उसका का काम तो मैगी से चल जाएगा। वो तो भला हो चेतन का जो रोज़ दोपहर में खाना खाने घर आता है वरना वंदना रानी रोज मैगी या पोहे से ही दोस्ती कर लें। उसे लगता है अब अकेले के लिए क्या बनाना? 


यही वंदना जब कहीं बाहर जानेवाली होती है और चेतन अकेला होता है तो दाल चावल सब्जी रोटी पूरा खाना बनाकर डाईनिंग टेबल सजाकर जाती है। क्यों? अरे भाई पति है उसका भूखे थोड़ी ना रख सकती है।


आइए दूसरा किस्सा दिखते हैं। राहुल और नीना अपने बेटे के साथ बाहर जा रहे हैं। राहुल ड्राइविंग सीट पर है और नीना भी सजधजकर आई। राहुल का बेटा जो कि 13 साल का है वो आगे अपने पापा के पास बैठ गया। राहुल ने बेटे से कहा "तुम पीछे बैठो, मम्मा को आगे बैठने दो।" नीना कूद पड़ी बीच में " अरे जाने दो ना राहुल। क्या फर्क पड़ता है मैं पीछे बैठू तो? बच्चा है।" राहुल "फर्क पड़ता है नीना। आज बच्चा है कल बड़ा हो जाएगा तो तुझे अपनी गाड़ी में पीछे ही बिठाएगा, अपनी पत्नी को नहीं।"


अब एक तीसरे घर में झांकते हैं। काजल जो कि घर की गृहलक्ष्मी है वो किचन में समोसे तलने में व्यस्त हैं और पूरा परिवार IPL देखने में। बीच बीच में काजल सबको समोसे देती रहती है। इतने में काजल की सास हेमाजी ने कहा "बेटा सारे समोसे तल देने के बाद ही सबको देने थे ना। तुम तो साथ बैठ खा नहीं पा रही हो।" "अरे नहीं मम्मी जी मैं तो बाद में खा लुंगी आप सब खा लो" "रिशील (काजल का पति) किचन में जाकर देख तो उसके लिए समोसे बचे भी है या नहीं" रिशील ने देखा लास्ट लॉट तलने के लिए कड़ाई में था और अभी भी बाहर से डिमांड आ रही थी। "काजल अब ये किसी को मत देना। मैं बोल देता हूँ कि खत्म हो गए। सबने मज़े लूट लूट के खाये हैं अब तुम खाओगी" "अरे नहीं रिशील, देने दो सबको। मेरा क्या है, कुछ और खा लुंगी।" "नहीं सबने खाया वो ही तुम खाओगी। इन्फेक्ट तुम्हें तो पहले खा लेना चाहिए था, उसके बाद तो बनाने की एनर्जी आती।"


अब आप बताइए ऊपर दिए गए कौनसे घर में किसी भी गृहलक्ष्मी या कहिए कि औरत से जबरदस्ती कुछ करवाया गया हो? वंदना, नीना, काजल सब खुद के लिए छोटा सा कदम उठा सकती थी। वंदना फुल प्लेट खाना खा सकती थी, नीना बेटे को पीछे की सीट में बैठने को कह सकती थी और काजल सबके साथ बैठकर समोसे और IPL का लुफ़्त उठा सकती थी पर उठाया नहीं क्यों? क्योंकि हम औरतों को खुद को सेकंड हैंड समझने की बड़ी बीमारी है।


आधे से ज्यादा घरों में जिस दिन पतिदेव खाने के टेबल पर नहीं होते, मेनू में कोई खास चीज़ नहीं होती। क्यों भाई? खाने पे थोड़े ना लिखा है कि दाल या चावल कहेंगे कि आज तुम्हारा पति नहीं है तो मैं पकनेवाली नहीं हूँ। ज्यादातर घरों में तो पहले घर के सब मेम्बर्स खा लेते हैं बाद में खाना पकानेवाली अन्नपूर्णा देवी खाती हैं। उसमें होता ये है कि जो चीज़ टेस्टी बनी होती है वो तो बचती भी नहीं। और हमारी अन्नपूर्णा देवी कहती है कोई बात नहीं मैं तो कुछ भी खा लुंगी..मुझे तो खिलाने में खुशी मिलती है। क्यों? हम इंसान नहीं हैं? 


क्यों हम अपने पति और बच्चों को नहीं सिखाते की परिवार का मतलब है सब साथ बैठ खाना खाएं।


और बात सिर्फ खाने की नहीं है। हम औरतों को हर चीज़ में खुद ही पीछे रहने की आदत हैं। मार्किट में आप रोज़ाना हज़ारों कपल्स ऐसे देखते होंगे जिनमें पतिदेव सीना ताने आगे चल रहे हैं और पत्नी पतिदेव के तेज कदमों से ताल मिलाने के लिए ऑलमोस्ट भाग रही है।


घर में कोई भी बड़ा निर्णय लेना हो तो ज्यादातर पत्नियां एक्टिवली पार्टिसिपेट नहीं करती। खासकर बिज़नेस की बात हो तो यही सुनने को मिलता है इसमें हम औरतों का क्या काम? वो तो घर के पुरुष हैं ना। 


अरे हमें खुद को सेकंड हैंड ट्रीट करने की इतनी आदत होती है कि घर की महिला हमेशा लास्ट में नहाने जाती है क्यों? क्योंकि सबके नहाने के बाद बाथरूम साफ करने का ज़िम्मा तो घर की मालकिन का ही हैं ना। हम खुद अपने पति और बच्चों को नहीं सिखाते की जो नहायेगा वो सफाई करके ही बाहर आएगा।


वैसे तो हम बड़े चिल्लाते हैं कि हमारी किसी को कदर नहीं, कोई हमारी केअर नहीं करता पर पहले हम तो खुद की कद्र कर लें। हम खुद की केअर करना तो सिख लें। 


क्यों किसी भी चीज़ के लिए कोम्प्रोमाईज़ करने में हम सबसे आगे रहना चाहते हैं वो भी बेवजह। क्या चेतन ने वंदना के हाथ बांध के रखे थे? 


ऐसे कोम्प्रोमाईज़ से क्या फायदा जहाँ दिन के अंत में हमें लगे कि बस मैं ही सबके लिए जीती हूँ। कोई मेरे लिए नहीं।


अगर हम चाहते हैं कि कोई हमारे लिए जिए तो पहले खुद के लिए जीना सीखें। खुद को प्रायोरिटी दीजिये। 

अगर आप खुद के लिए बेवजह कॉम्प्रोमाइज नहीं करेंगी तो दूसरों से भी उसकी उम्मीद नहीं रखेगी और खुशियां अपने आप हाथ लग जायेगी। 


परिवार की नींव आप हैं जैसा आप बोयेगी वैसा ही आनेवाली पीढ़ी पाएगी।

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