गहरी शिक्षा
रामायण में एक बड़ा सुंदर प्रसंग है जो हमें वर्तमान परिप्रेक्ष्य में बहुत गहरी शिक्षा देता है...
जब हनुमान जी समुद्र लांघ रहे थे तो सुरसा नामक राक्षसी उनको खाने के लिए ललकारने लगी,,,,
हनुमान जी छोटा रूप कर समुद्र लांघ रहे थे। तुरन्त हनुमान जी ने अपना आकार बढ़ाया जिससे सुरसा उनका भक्षण न कर सके।
सुरसा ने अधिक बड़ा मुख खोला,
हनुमान जी ने उससे बचने के लिए अधिक बड़ा शरीर धारण किया.....
सुरसा ने उससे बड़ा मुख बनाया।
हनुमान जी ने उससे विनती की कि अभी उन्हें जाने दिया जाय क्योंकि वो बहुत महत्वपूर्ण कार्य से जा रहे है.....
जब सुरसा नहीं मानी तो उन्होंने अति लघु रूप धारण कर उसके मुख में प्रवेश किया व् तुरत बाहर निकल आये....
सुरसा अपने असली रुप में आ गयी व उन्हें आशीर्वाद दिया कि उनमें बल के साथ-साथ विवेक भी बहुत है अतः उन्हें उनके प्रयोजन में सफलता मिलेगी...
सुरसा नामक बाधा,
कष्ट कठिनाई अथवा परीक्षा हम सभी के जीवन में आती है।
इस दुनिया में दो तरह के लोग है-
एक वो जिनके जीवन का उच्च आध्यात्मिक लक्ष्य है, ऐसे लोग बहुत कम है।
दूसरे वो जो अपने पद प्रतिष्ठा,
मान सम्मान, घर परिवार व धन संचय तक सीमित हैं।
व्यक्ति जब भी उच्च लक्ष्य पर चलता है तो सुरसा नामक बाधाएँ उसके जीवन में बहुत आती है।
उससे ऐसे लोग टकराते रहते है जो व्यर्थ में उसका रास्ता रोकने का प्रयास करते है।
ऐसी परिस्थिति में व्यक्ति के पास दो मार्ग हैं या तो दूसरे अंह के साथ टकराने में अपनी शक्ति व्यर्थ करता रहें या फिर दूसरे के अंह को बड़ा रख स्वयं छोटा बन वहाँ से निकल जाए।
यदि हम दूसरों के अंह से टकराते रहेंगें तो हमारा शक्ति व समय का बड़ा भाग इसी उलझन में व्यर्थ होता रहेगा।
कभी-कभी तो ऐसा होता है कि जिस लक्ष्य को लेकर हम चले थे वह पीछे छूट जाता है और आपसी टकराव व एक दूसरे से बदला लेने की भावना हमारे दिलोदिमाग पर हावी होती चली जाती है..
यदि हनुमान जी के इस प्रसंग से हम कुछ शिक्षा लें तो वह यह है कि अपने लक्ष्य के लिए दुसरे से छोटे भी बन जाओ तो उसमें बुद्धिमानी है...
कभी-कभी दूसरों को उनके अहम् पर छोड़ देने में ही जीवन का सार होता है...।
जय श्री राम जी
जय श्री हनुमानजी
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