प्रिय चांद
प्रिय चाँद
मैं ठीक हूँ
। तुम्हारी कुशलता
का समाचार मिला
। सुनकर अच्छा
लगा। तुम्हारे प्रिय
भाँजे विक्रम और
प्रज्ञान कई दिनों
की कड़ी और दुर्गम यात्रा
के बाद सकुशल
तुम्हारे पास पहुँच
गये। प्रज्ञान अभी
छोटा है थोड़ा
नटखट भी। तुम्हारे
घर पहुँच कर
भी विक्रम बता
रहा था कि काफ़ी देर
तक वो विक्रम
की गोद में ही दुबका
रहा। शायद लम्बी
दूरी की यात्रा
करके काफ़ी थक
गया होगा। अब
सुना है वो विक्रम की
गोद से उतर कर अपने
ननिहाल में धमाचौकड़ी
मचाना शुरू कर दिया है।
दरअसल ये लोग
काफ़ी समय से तुम्हारे यहाँ जाने
की ज़िद कर रहे थे।
हम बताते थे
कि मामा का दक्षिण वाला
घर बहुत दुर्गम
क्षेत्र में है । पता
नहीं वहाँ खाना
पानी हवा है भी कि
नहीं और सबसे बड़ी बात
आज तक कोई भी मामा
के साउथ वाले
बंगले पर कदम भी नहीं
रख पाया है लेकिन मजाल
है कि इन लोगों को
कभी डर लगा हो। दो
बार तो ये जाने के
लिए घर से निकल भी
पड़े लेकिन बैड
लक रहा कि नहीं पहुँच
पाये।
ये दोनों जब
भी करवा चौथ
में तुम्हें अर्घ्य
देते देखते या
ईद में तुम्हारा
इंतज़ार करते लोगों
को देखते तो
पूछते कि ये मामा में
ऐसा क्या ग्लैमर
है जो सारे हिंदू मुस्लिम
इनकी इतनी इज़्ज़त
करते हैं। कभी
ये लोग कोई रोमांटिक गाना सुनते
तो उसमें भी
जब तुम्हारा ज़िक्र
होता तो ख़ुशी
से फूले न समाते। अभी
जल्दी में ही जब से
इन लोगों ने
“ तेरे वास्ते फलक
से मैं चाँद
लाऊँगा सोलह सत्रह
सितारे संग बांध
लाऊँगा” सुना है तब से
तो बिल्कुल ऊधम
काट के रख दिया कि
मुझे जाना है।
अब इन लोगों
की ज़िद के आगे तो
सरकार भी नतमस्तक
हो गई और बोली अच्छा
जाओ लेकिन ज़्यादा
खर्चा वर्चा नहीं
करना तब इन लोगों ने
प्रॉमिस किया कि बिल्कुल कंजूसी में
यात्रा निबटा लेंगे।
इनकी देखा देखी
कुछ और लोगों
ने भी कोशिश
कि लेकिन उनके
इरादे फुस्स हो
गये।
अब मैं इन्हें
तुम्हारे पास देखकर
निश्चिंत हूँ। इन्हें
खूब घुमा फिरा
देना। ये भी दिखा देना
कि पानी हवा
वग़ैरह कहाँ हैं।
पहली बार भाँजे
गए हैं देखना
कोई तकलीफ़ न
हो ।
शेष सब कुशल
है। जल्दी ही
करवा चौथ आने वाला है
तब तुमसे फिर
मुलाक़ात होगी।
जयहिंद जय भारत
तुम्हारी बहन
“धरा” भारती
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