बदली सोच
बदली सोच
बदली सोच
विद्यालय से निकलते ही मुझे याद आया कि बच्चों ने जामुन लाने के लिए कहा था…
तभी
सड़क किनारे बड़े
और ताज़ा जामुन
बेचते हुए एक बीमार सी
दिखने वाली बुढ़िया
दिख गयी.. वैसे
तो मैं फल हमेशा “
फ्रूट भंडार” से
ही लेती हूं. पर आज
लगा कि क्यों
न बुढ़िया से
ही खरीद लूँ..?
मैंने बुढ़िया
से पूछा..
माई
जामुन कैसे दिए.
. बुढ़िया
बोली..
बिटिया 40 रूपये किलो..
मैं बोली..
माई 30 रूपये
दूंगी..
बुढ़िया ने कहा..
35 रूपये दे
देना.. दो पैसे मै भी
कमा लूंगी..
मैं बोली..
30 रूपये लेने
हैं तो बोलो.
. बुझे चेहरे से
बुढ़िया ने..
" न " मे गर्दन
हिला दी..
मैं बिना कुछ कहे
चल पड़ी और..
“ फ्रूट भण्डार”
पर आकर जामुन
का भाव पूछा
तो वह बोला
50 रूपये किलो हैं..
कितने दूँ..?
मैं बोली..
5 साल से फल
तुमसे ही ले रही हूँ.
ठीक भाव लगाओ..
तो उसने सामने
लगे बोर्ड की
ओर इशारा कर
दिया..
बोर्ड पर
लिखा था - मोल
भाव करने वाले
माफ़ करें..
मुझे उसका यह
व्यवहार बहुत बुरा
लगा..
मैंने कुछ सोचकर
स्कूटी
को वापस विद्यालय की ओर मोड़
दिया..
सोचते -सोचते उस बुढ़िया के पास पहुँच गई..
बुढ़िया ने मुझे पहचान लिया
और बोली..
बिटिया जामुन दे
दूँ..
पर भाव 35 रूपये
से कम नही लगाउंगी..
मैंने मुस्कुराकर कहा..
माई एक नहीं दो
किलो दे दो और भाव
की चिंता मत
करो..
अब बुढ़िया का चेहरा
ख़ुशी से दमकने
लगा..
जामुन देते
हुए बोली.. बिटिया,मेरे पास
थैली नही है..
फिर बोली..
एक टाइम था
जब मेरा आदमी
जिन्दा था.. तो मेरी भी
छोटी सी दुकान
थी..
सब्ज़ी.. फल सब बिकता था
उस पर..
आदमी की
बीमारी में दुकान चली गयी.
. आदमी भी नही
रहा..
अब खाने के
भी लाले पड़े
हैं..
किसी तरह
पेट पाल रही हूँ.
. कोई औलाद भी
नही है.. जिसकी
ओर मदद के लिए देखूं..
इतना कहते
कहते बुढ़िया रुआंसी
हो गयी और..
उसकी आंखों मे
आंसू आ गए..
मैंने 100 रूपये
का नोट बुढ़िया
को दिया तो वो बोली
,
बिटिया छुट्टे तो नही
हैं..
मैं बोली माई चिंता
मत करो..
रख लो..
अब मै
तुमसे ही फल खरीदूंगी और..
कल मै
तुम्हें 1000 रूपये दूंगी..
परसों से
बेचने के लिए मंडी से
दूसरे फल भी ले आना..
बुढ़िया कुछ कह पाती उसके
पहले ही मैं घर की ओर रवाना
हो गई.
रास्ते भर मैं सोचते रही..
न जाने
क्यों हम हमेशा
मुश्किल से पेट पालने वाले..
ठेला लगा कर सामान
बेचने वालों से
मोल भाव करते
हैं किन्तु बड़ी
दुकानों पर मुंह मांगे पैसे
दे आते हैं..
शायद हमारी
मानसिकता ही बिगड़
गयी है.. गुणवत्ता
के स्थान पर
हम चकाचौंध पर
अधिक ध्यान देने
लगे हैं..
अगले दिन
मैंने बुढ़िया
को १००० रूपये देते
हुए कहा.. माई
लौटाने की चिंता
मत करना..
जब मैंने विद्यालय में ये
किस्सा बताया तो
सबने बुढ़िया से
ही फल खरीदना
प्रारम्भ कर दिया..
दो
महीने बाद हमने आपस में मिलकर बुढ़िया को एक हाथ ठेला
भेंट कर दिया..
बुढ़िया अब बहुत खुश है..
उचित खान
पान के कारण उसका स्वास्थ्य
भी पहले से बहुत अच्छा
है..
हर दिन
हमें दुआ देती नही
थकती..
मेरे मन में भी
अपनी बदली सोच
और एक असहाय
निर्बल महिला की
सहायता करने की संतुष्टि का भाव रहता है.
जीवन मे
किसी बेसहारा की
मदद करके देखो..
अपनी पूरी जिंदगी
में किये गए सभी कार्यों
से ज्यादा संतोष
मिलेगा..
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