रावण
रावण...
रावण को
भाई के रूप में वही
पसन्द कर सकती है जिसका
चरित्र सूर्पनखा जैसा
हो। जो वन-वन घूम
कर दूसरी स्त्रियों
का पति चुराती
हो। या जो किसी सुन्दर
स्त्री को देखे तो अपने
भाई को उसका हरण करने
के लिए प्रेरित
करे। ऐसी स्त्रियाँ
कभी आदर्श नहीं
हो सकतीं।
रावण को
भाई के रूप में वही
पुरुष पसन्द करता
है जिसका चरित्र
कुंभकर्ण जैसा हो।
जो सज्जन होने
के बावजूद भाई
के कुकर्मों के
समय आंख बंद कर ले।
ऐसे लोग कभी अनुकरणीय नहीं हो सकते।
रावण को
पति के रूप में वही
स्त्री पसन्द कर
सकती है, जो अपने पति
को हजार टुकड़ों
में बंटते देख
सकती हो। जो देख सकती
हो कि उसका पति यक्ष,
गन्धर्व, नाग, असुर,
राक्षस, यवन सभी जाति की
स्त्रियों का हरण
करे और बलपूर्वक
अपनी पत्नी बना
कर रखे। जो सहन कर
सकती हो कि उसका पति
उसकी किसी भी बात को
न माने... वह
गिड़गिड़ाती रहे, पर
उसका पति उसकी
बात अनसुनी कर
के पाप करता
रहे।
रावण को
मित्र के रूप में वही
पसन्द कर सकते हैं जिनका
चरित्र बाली के जैसा हो।
जो अपने छोटे
भाई की स्त्री
को बलपूर्वक छीनने
में लज्जा का
अनुभव नहीं करता
हो। जो तारा जैसी विदुषी
पत्नी की भी कोई बात
नहीं मानता हो।
ऐसे लोग भी सम्मान के
योग्य नहीं होते।
रावण को
अपना नायक वही
मान सकते हैं
जिन्हें न धर्म का ज्ञान
है, न वेद का। रावण
उन राक्षसों का
नायक था जो ऋषियों के
हवन कुंड में
हड्डियां डालते थे,
जो ऋषियों को
मार कर खा जाते थे,
जो मनुष्यों को
जीने नहीं देते
थे। रावण ऐसे
ही अमानुषों का
नायक हो सकता है।
रावण को
एक आदर्श पुत्र
मानने वाले मूर्ख
ही हैं, क्योंकि
रावण के कुकर्मों
के कारण स्वयं
उसके पिता ने उसका त्याग
कर दिया था।
जिस व्यक्ति के
कारण उसका लज्जित
पिता नगर छोड़ दे, वह
और कुछ भी हो आदर्श
पुत्र नहीं हो सकता।
रावण ब्राह्मणों
का नायक न था, न
है, न होगा...
ब्राह्मणों के आदर्श
हैं वे गुरु वशिष्ठ जिन्होंने
राजकुमार राम को
मर्यादा पुरुषोत्तम राम
बनाया। ब्राह्मणों के
नायक हैं वे दधीचि, जिन्होंने
धर्म की रक्षा
के लिए अपनी
हड्डियां दान कर
दी।
भारतीय लोक
रावण को हर विजया के
दिन बुराई के
प्रतीक के रूप में जलाता
रहा है, और जलाता रहेगा।
आज भी, और हजार वर्ष
बाद भी... । यही भारत
है...
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