"जरिया....


 

"जरिया....

।।किसी की जरूरत नहीं जरिया बनिए।।

मोहन अक्सर रविवार को अपने दोस्तों से मिलने अपनी बाइक से ही जाता था मगर इस बार पत्नी मेघा के कहने पर उसने गैरेज में खड़ी हुई अपनी कार लेकर जाना ही अच्छा समझा कुछ दोस्तों से मिलते मिलाते दोपहर हो गई थी सो वह वापस घर जाने के लिए निकला ही था कि रास्ते में गाड़ी बंद पड़ गई काफी कोशिश के बाद भी गाड़ी स्टार्ट नहीं हो रही थी पास के एक मैकेनिक को दिखाया तो उसने पूरी गाड़ी सर्विस करवाने को कहा मोहन गाड़ी वहीं छोड़कर अपने घर किसी आटो टैक्सी से जाने को सड़क किनारे गया मगर आज धूप बहुत तेज थी वो पूरी तरह पसीने से लथपथ हो गया था काफी दूर तक कोई आटो टैक्सी भी नजर नहीं रही थी ऐसे में उसने वहां खड़े होकर इंतजार करने की जगह पैदल ही चलने का निर्णय लिया अभी वह कुछ ही दूर चला था कि अचानक एक आवाज उसके कानों में गूंजी कहां जाना है बाबूजी आपको

मोहन ने पीछे मुड़कर देखा तो एक पैंतालीस पचास वर्षीय बूढ़ा आदमी साइकिल रिक्शा लिए उसके पास कर खड़ा हो गया था

जाना तो बहुत दूर है बाबा...धूप भी बहुत तेज है और फिर तुम्हारा यह रिक्शा ऊपर से ढंका हुआ भी नहीं है इतनी धूप में कैसे खींचोगे छोड़ो

खींच लूंगा बाबूजी...आप बैठिए तो सही वह दोनों हाथों को जोड़कर बोला

धूप बहुत तेज हो रही थी सो मोहन ने बैठना मुनासिब समझा

उधर एक और उस साइकिल रिक्शा वाले ने रिक्शा चलाना शुरू किया तो वहीं दूसरी ओर सूरज ने अपना ताप बढ़ाना शुरू कर दिया मोहन पीछे सीट पर भले ही बैठा था मगर उस रिक्शा वाले के पसीने की धाराएं बराबर देख  रहा था और यह सब देख उसकी आत्मा उसे कचोट रही थी

एकबार तो मन हुआ वह रिक्शा से उतर जाए किराया देकर मगर ऐसे में उस रिक्शा वाले को क्या लाभ दूसरी किसी सवारी को बिठाएगा तो भी तो खिंचेगा तो भी तो पसीने से तरबतर होगा तो इसके लिए इसके रिक्शा पर आरामदायक तिरपाल लगवा देनी चाहिए मगर कैसे कहूं चलो बातें करते हुए पूछता हूं शायद बातें करने से बढ़ती गर्मी से इसका ध्यान हट जाए और कोई इस बुजुर्ग की मदद हो जाएं

बाबा....कौन कौन है आपके घर में

बाबूजी मैं और मेरी पत्नी है औलाद के रूप में भगवान की कोई कृपा नहीं हुई

ओह .... अच्छा लेकिन बाबा इतनी दोपहर में रिक्शा क्यों चलाते हो मेरा मतलब कोई नौकरी या दूसरा काम वगैरह

बाबूजी मेरी पत्नी को दमे की बीमारी है आज दवा खत्म हो गई है पैसे की बहुत जरूरत थी इसीलिए.....और बाबूजी इस बूढ़े को कौन नौकरी देगा नौजवान तो बेरोजगार घूम रहे थे और काम धंधे को पैसा....

कहते हुए वह चुप हो गया वह बोलते हुए हांफ रहा था

रास्ते में गन्ने के रस के ठेले पर मोहन ने रिक्शा रुकवा दिया ताकि वो बुजुर्ग थोड़ा आराम कर सके दो गिलास रस ले कर मोहन ने पूछा अच्छा बाबा हमारे ऑफिस में गार्ड की जगह खाली है आप वहां नौकरी .....

क्या नौकरी....हां हां बिल्कुल कर लूंगा बाबूजी

इतना ही नहीं वहां रहना और खाना भी फ्री

वह रिक्शा वाला उसी जगह खड़े हो मोहन के पैरों में झुकने लगा आपने तो मेरे रिक्शा में नहीं बल्कि मेरे परिवार पर ही छत बना कर हमेशा के लिए ठंडक ला दी

अरे बाबा आप मेरे पिता की उम्र के है ऐसे मत कीजिए और मैं कौन हूं वो सब भगवान करता रहता है ऊपर बैठ कर

हां सही है भगवान सब जगह नहीं पहुंच सकता है तो अपने बन्दों को भेज देता है ऐसा मैंने अपने मां बाबूजी से सुना था

मोहन मुस्कुरा भर दिया घर पहुंच कर उस रिक्शा वाले को किराए के साथ साथ अपने आफिस का पता दिया ताकि अगले दिन वह ड्युटी पर पहुंच सकें

दोस्तों किसी की जरूरत नहीं जरिया बनिए ताकि किसी की जिंदगी संवर जाए..

 

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