पल्लू में बंधा प्यार

 

  पल्लू में बंधा प्यार

प्रमिला का एक ही बेटा पुनीत,, जिस पर वह जान छिड़कती है।

पति के जाने के बाद वही तो उसका एक सहारा है। सिलाई -बुनाई करके वह अपनी आजीविका चला रही है…..

 फिर भी उसने अपने बेटे को अच्छे स्कूल में डाला है। बिना एक दिन भी नागा किए वह अपने बच्चे को स्कूल से लेने जरूर जाती है ।

चाहे चिलचिलाती धूप हो या बारिश की फुहार। और साथ में जाता है पल्लू में बंधा उसका प्यार। मतलब उसके बेटे की पसंद की कोई भी खाने की चीज उसके पल्लू में जरूर बंधी होती है।

और बेटा भी स्कूल से बाहर निकलते ही सबसे पहले मां का पल्लू टटोलता है कि आज उसमें क्या खजाना है खाने के लिए। और मां उसे बस निहारती रह जाती है।

गांव की पाठशाला में पढ़ी प्रमिला शायद कक्षा दो या तीन तक ही पढ़ पाई थी क्योंकि भाई को पढ़ाने के लिए पैसे कम पड़ रहे थे तो उसका नाम कटा दिया गया। आखिर उसकी शादी भी तो करनी थी उसके लिए भी तो पैसे चाहिए थे।

इसके बावजूद उसने अपने बेटे को जीवन जीने की शिक्षा जरूर दी थी भले ही वह किताबी ज्ञान न दे पाई हो।

आज उसका बेटा २८ साल का हो गया है और वह एक बड़ा वैज्ञानिक बन चुका है। इसरो में काम करते हुए उसने चंद्रयान-३ मिशन की सफलता में अपनी अहम भूमिका निभाई है और चारों तरफ उसकी जय- जयकार हो रही है।

आज पुनीत 2 वर्षों के बाद घर आने वाला है। प्रमिला के घर में पड़ोसियों, रिश्तेदारों और रिपोर्टर्स की भीड़ लगी हुई है। सभी उसका इंटरव्यू लेना चाहते हैं और पुनीत का इंतजार भी कर रहे हैं।

आज प्रमिला का मन खुशी से सराबोर है । लेकिन उसकी नजरे दरवाजे पर ही टिकी है कि कब उसका बेटा आए और कब वह उसे गले लगाए।

तभी दरवाजे पर एक शानदार कार रूकती है और भीड़ पुनीत की तरफ दौड़ पड़ती है। प्रमिला वहीं अश्रुपूरित नयनों से जड़वत खड़ी रह जाती है ।

तभी भीड़ को चीरता हुआ पुनीत अपनी मां के पास आता है और सबसे पहले उसके पैरों को छूकर प्रणाम करता है और उसकी पल्लू में कुछ टटोलने लगता है और आज भी उसे मां के पल्लू में अपनी फेवरेट मिठाई सोनपापड़ी मिल ही जाती है। वह अपना पूरा पंजा फैला कर सारी सोन पापड़ी एक साथ उठाकर मुंह में डाल लेता है।

आज भी मां आंखों में ख़ुशी के आंसू लिए उसे निहारती रह जाती है।

 अनायास ही मां -बेटे गले लग जाते हैं और दोनों की आंखों से अविरल अश्रु धाराएं बहने लगती हैं जो रुकने का नाम नहीं लेती।

मां की इतने दिनों की तपस्या आज पूर्ण हो जाती है।

संसार में मां ही वह जीव है जो खुद दुख सहते हुए भी अपने बच्चों को संस्कार और शिक्षा देना नहीं भूलती।

 

 


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