सबका पालनहार
सबका पालनहार
उस दिन सबेरे
6 बजे मैं अपने
शहर से
दूसरे शहर जाने
के लिए निकली,
मैं रेलवे स्टेशन
पहुंची ,
पर देरी से
पहुचने कारण मेरी
ट्रेन निकल चुकी
थी,
मेरे पास 9.30 की ट्रेन
के आलावा कोई
चारा नही था,
मैंने सोचा कही
नाश्ता कर लिया जाए,
बहुत जोर की
भूख लगी थी
मैं होटल की
ओर जा रही थी।
अचानक रास्ते में
मेरी नजर फुटपाथ
पर बैठे
दो बच्चों पर
पड़ी,
दोनों लगभग 10-12 साल के रहे होंगे
बच्चों की हालत
बहुत खराब हो चुकी थी।
कमजोरी के कारण
अस्थिपिंजर
साफ दिखाई दे
रहे थे,
वे भूखे लग
रहे थे।
छोटा बच्चा बड़े
को खाने के बारे में
कह रहा था,
बड़ा उसे चुप
कराने की कोशिश
कर रहा था,
मैं अचानक रुक
गई दौड़ती भागती
जिंदगी में
पैर ठहर से
गये।
उनको को देख
मेरा मन भर आया ,
सोचा इन्हें कुछ
पैसे दे दिए जाए,
मैंने उन्हें ५
रु दे कर आगे बढ़
गई।
तुरंत मेरे मन
में एक विचार
आया कितनी कंजूस
हूं मैं,
५ रु क्या
खाएंगे ये
चाय तक ढंग से न
मिलेगी,
स्वयं पर शर्म
आयी और वापस लौटी।
मैंने बच्चों से
कहा,कुछ खाओगे
?
बच्चे थोड़े असमंजस
में पड़े मैंने
कहा
बेटा मैं नाश्ता
करने जा रही हूं,
तुम भी कर
लो,
वे दोनों भूख
थे तुरंत तैयार
हो गए।
उनके कपड़े गंदे
होने के कारण होटल वाले
ने
उनको डांट दिया
और भगाने लगा,
मैंने कहा भाई
साहब उन्हें जो
खाना है
वो उन्हें दो
पैसे मैं दूंगी।
होटल वाले ने
आश्चर्य से मेरी ओर देखा..
उसकी आँखों में
उसके बर्ताव के
लिए
शर्म साफ दिखाई
दी।
बच्चों ने नाश्ता
मिठाई व् लस्सी
मांगी।
सेल्फ सर्विस के
कारण मैंने नाश्ता
बच्चों को
लेकर दिया बच्चे
जब खाने लगे,
उनके चेहरे की
ख़ुशी देखने वाली
थी,
मैंने बच्चों को
कहा बेटा अब जो मैंने
तुम्हे पैसे दिए
है उसमे 1 रु
का शैम्पू ले
कर हैण्ड पम्प
के पास नहा लेना।
और फिर दोपहर
शाम का खाना पास के
मन्दिर में चलने
वाले लंगर में
खा लेना, और
मैं नाश्ते के
पैसे दे कर फिर अपनी
दौड़ती दिनचर्या की
ओर निकल गई।
वहा आसपास के
लोग बड़े सम्मान
के साथ देख रहे थे
होटल वाले के शब्द आदर
मे परिवर्तित हो
चुके थे।
मैं स्टेशन की
ओर निकली, थोडा
मन भारी लग रहा था
मन उनके
बारे में सोच कर दुखी
हो रहा था।
रास्ते में मंदिर
आया मैंने मंदिर
की ओर देखा और कहा
,"हे भगवान," आप
कहा हो ? इन बच्चों की
ये हालत ये भूख देख
आप कैसे चुप
बैठ सकते है।
दूसरे ही क्षण
मेरे मन में विचार आया,
पुत्री अभी तक
जो उन्हें नाश्ता
दे रहा था वो कौन
था?
क्या तुम्हें लगता है तुमने वह
सब अपनी सोच
से किया।
मैं स्तब्ध हो
गई, मेरे सारे
प्रश्न समाप्त हो
गए
ऐसा लगा जैसे
मैंने ईश्वर से
बात की हो।
मुझे समझ आ
चुका था हम निमित्त
मात्र है,
उसकी लीला अपरंपार
है,
भगवान हमे किसी
की मदद करने
तब ही भेजता
है
जब वह हमे
उस काम के लायक समझता
है,
किसी की मदद
को मना करना
वैसा ही है
जैसे भगवान के
काम को मना करना।
.
खुद में ईश्वर
को देखना ही
ध्यान है,
दुसरो में ईश्वर
को देखना प्रेम
है,
ईश्वर को सब
में और सब में ईश्वर
को देखना ज्ञान
है
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