क्योंकि जरूरी नहीं की परिस्थितियों हमेशा एक जैसी हो
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क्योंकि जरूरी नहीं की परिस्थितियां
हमेशा एक जैसी हों……
सारा दिन घर में
पड़ी रहती हो "एक
काम ढंग से नहीं करना
चाहती ।" तुम्हे
कितनी बार बोला
है , मेरे तैयार
होने से पहले नाश्ता टेबल
पर रख दिया करो, तुम्हें
ये एक ही बात रोज़
बतानी पड़ती हैं।
शादी के 25 साल
हो गए, पर तुम्हारी बेवकूफी कम
नहीं हुई। तुम्हे
तो घर पे बैठना रहता
हैं, मुझे तो काम पर
जाना है। अगर ये सब
तुम जानबूझ कर
करती हो
तो याद रखना
मुझसे बुरा कोई
नहीं होगा।
आज भी सूरज का गुस्सा
सातवें आसमान पर
था
। इन कटु शब्दों में अपना गुस्सा उतारते
हुए, गीला तौलिया
कुर्सी पर फेकते
हुए सूरज "गुस्से से
सुनीता की तरफ देखने
लगा।
"सुनीता के लिए
सूरज का ये बेवजह
का गुस्सा करना
कोई
नई बात नही थी। वह
महीने में तीन-
चार बार उस पर बेवजह बरस
पड़ता था। अगर सुनीता अपनी जरूरत के
लिए सूरज से कुछ पैसे
मांगती तो , वो भी इतना
अहसान जता कर देता, जैसे
मानो उस पैसे पर सुनीता का
कोई हक नही हो। धीरे
- धीरे सुनीता ने
अपने सारी जरुरते
और ख्वाहिशें उस
घर की चार दीवारों में दफ्न
कर दी थी। सिर्फ नौकरों
की तरह काम करना , और
बेवजह सूरज के गुस्से को
खून का घूंट पी कर
रह जाना उसकी आदत बन गई
थी । पहले
शादी के 4-5 साल
सुनीता ने
इसका विरोध किया
पर कुछ सुधार
नहीं हुआ, तो अपनी किस्मत
समझ कर समझौता
कर लिया।"जब सूरज में कोई बदलाव
नहीं हुआ तो सुनीता ने
खुद को ही बदल दिया।
अब सूरज के कुछ भी
कहने से सुनीता को कोई
फर्क नही पड़ता
था। सूरज की हर बात
को वो सिर नीचे झुकाए
सुन लेती थी।
शादी के 5साल तक सुनीता ने पूरी
कोशिश की थी,की सूरज को बदला
जाए , लेकिन फालतू
का गुस्सा करना
उसे भला-बुरा
कहना, मानो उसकी आदत
बन गई थी।कोई
भी बात विवाद
होता, सूरज सुनीता को
सीधा बोल देता,
ज्यादा तकलीफ हो
तो चली जाओ अपने मां
-बाप के घर , क्यों रहती
हो मेरे साथ
?"इतना सब कुछ
होने के बाद भी सुनीता सूरज के साथ ही
रहती थी। क्योंकि
उसे अपनी बेटी
की फिक्र थी।और
वह जाती भी तो कहां? इस उम्र
में वह अपने बूढ़े मां-बाप को
परेशान नहीं करना
चाहती थी। समाज
और लोग क्या
कहेंगे यह भी तो उसे
सोचना पड़ता था।
वह इतनी पढ़ी
-लिखी भी नही थी कि अपना और
अपनी बेटी का पालन-पोषण
कर सके।
सुनीता को अब
अपनी फिक्र नहीं
थी। उसे फिक्र
थी तो अब अपनी शादी
लायक
बेटी की।वो नहीं चाहती थी,कि पति-पत्नी के
झगड़े की वजह से पूजा
डिस्टर्ब हो ।
पूजा की पढ़ाई
पूरी हो चुकी थी। अब
उसके लिए अच्छी
शादी का इंतजार
था, सुनीता ने
कई रिश्ते देखें।
लेकिन उसको अपनी
बेटी लायक रिश्ता
नहीं दिखता तो
इनकार कर देती,
दो -तीन महीने
बाद एक अच्छा
रिश्ता आया। रिश्तेदारों
और परिवार के
लोगो ने भी बहुत तारिफ
की थी। सूरज एक शाम अपनी बेटी
के पास बैठकर
बताने लगा।" पूजा
बेटा बहुत अच्छा
लड़का है । पढ़ा- लिखा
है, बहुत बड़ा
घर है, उस घर में
तुम्हे कोई तकलीफ
नहीं होगी, लड़के
की बहुत अच्छी
नौकरी हैं। ऐसे
रिश्ते बार बार नही आते
बेटा। बस इस बार मना
मत करना ।"पूजा अपने
पिता से ज्यादा
बात नही करती
थी। शायद डरती
थी,या नफरत करती थी।
लेकिन आज वो अपनी पूरी
हिम्मत इक्कठा कर
बोली,"मुझे अभी
शादी नहीं करनी है ,पापा। मैं
नौकरी करना चाहती
हूं,खुद के पैरों पर
खड़ा होना चाहती
हूं। मैं आत्मनिर्भर
बनना चाहती हूं। तो उसमे
क्या बड़ी बात
है,मैंने बात की
है लड़के से
वह तैयार है।
वह तुम्हे किसी
बात से नही रोकेगा ।
पर पापा मेरा
नौकरी करना, ना करना
उसके ऊपर क्यूं डिपेंड रहेगा
?"पूजा ने पूछा
।
मैं कह रहा
हूं ना वहां तुम्हे किसी
भी चीज की कोई कमी
नहीं होगी , ऐसे
रिश्ते बार बार नही आते
।मत ठुकरा बेटा,
बहुत खुश रहोगी
तुम वहां।पापा
क्या मैं उतनी
ही खुश रहूंगी,
जितनी इस घर में मम्मी
खुश है।" पूजा
ने तंज कसते
हुए कहा। आज तुम्हारी जुबान कुछ
ज्यादा नही चल रही, सूरज गुस्से से
आंखें बड़ी करते
हुए बोला। पर
पापा मुझे शादी
ही नही करनी
है, शादी
के बाद अगर वो लड़का
आपके जैसे निकला
तो,मैं क्या
करूंगी। मुझे आपके
जैसा लड़का नही
चहिए,जो बिना बात के
मुझपर चिल्लाए, मुझे
कुछ भी अपनी पसंद का लेना
हो तो ,10 बार
सोचना पड़े, कही
वह नाराज ना
हो जाए , मेरी
तबीयत कैसी भी हो , उसे
फर्क ना पड़े
, रोटी थोड़ी मोटी
हो जाए तो वह घर
सिर पर उठा ले, उसकी
चेक बुक ना मिले तो
मुझे गवार बोले
उसका दोष भी मेरे सिर
मढ दे,हर छोटी -मोटी
बात में मायके
जाने के लिए कहे। मैं
इस घर के लिए पराई
हूं, अगर मेरा
जीवनसाथी भी आपके
जैसे बात- बात
में मायके जाने
को कहे तो बताइए मेरा
अपना घर कौन सा होगा? जिसे मैं अपना घर
कह सकूं । सूरज का गुस्सा
सातवे आसमान पर
था।पर उसके मुंह
से एक शब्द भी नही
फूटे, वह बस पूजा की
बात सुन रहा था,"पूजा उतना
ही बोलकर चुप
नही हुई ,आज पहली बार
वह अपने पापा
के सामने इतना
कुछ कहने की हिम्मत जुटा
पाई थी। पापा
आपने हमेशा मम्मी
के साथ गलत व्यवहार किया है।आप
हमेशा अपने ऑफिस
का गुस्सा मां
पर उतार देते
है। कभी इस बात की
परवाह नही करते
की उन्हें कैसा
लगता होगा, आपकी
बाते सुन -सुन
कर मां ने अपना स्वाभिमान
खो दिया है।"पूजा ने
सूरज का हाथ पकड़ा
और बोली, पापा
आप सिर्फ
एक सवाल का जवाब दे
दो क्या आप चाहेंगे कि मेरा जीवनसाथी ऐसा हो? अगर हां
तो मैं शादी
के लिए तैयार
हूं।
कर दीजिए मेरा
रिश्ता आज ही ।और ना
है तो बनने दीजिए मुझे
आत्मनिर्भर ।
सूरज कुछ भी
न बोल पाया
चला गया ।आज उसे सुनीता के सामने जाने
में शर्म आ रही थी।
वह सुनीता के
साथ किए गए व्यवहार पर पछता रहा था।
अगर मैं नही चाहता की
मेरी बेटी को ऐसा जीवनसाथी
मिले जो उसे सुख ना
दे सके ,तो मैं सुनीता के
साथ ऐसा कैसे कर रहा था,,
वो भी तो किसी की
लाडली बेटी है। सूरज चलते-चलते सोच
रहा था,और उसकी आंखो
से आंसू बह रहे
थे। सुनीता को
कुछ ही दिनों
में अपने पति
के अंदर काफी
बदलाव दिखे, वो सोच रही थी, जो
हिम्मत आज पूजा ने दिखाई,
वह मैने दिखाई
होती तो आज परिस्थिति कुछ और होती।
अब पूजा पढ़-लिख कर
अच्छी नौकरी कर
रही हैं ।तीन
साल बाद, उसके
लिए अच्छा रिश्ता
आया था ,आज उसकी विदाई
है। आज उसके विदाई पर
पापा बोले बेटा
तू हमेशा खुश
रहेगी, क्योंकि तेरा
पति तेरे पापा
जैसा नहीं है
, हो सके तो मुझे माफ
कर देना। सूरज की
यह बात सुनकर
दोनो की आंखो से आंसू बहने लगे।
आज भी समाज
में , मेरे और आप जैसे
लोग हैं , गलत
बात पर राय रखना या
अपनी मन की बात कहना
, औरतों का भी अधिकार होना
चाहिए, आज सभी मां- बाप
से निवेदन है
, की बेटी को आत्मनिर्भर बनने देना
चाहिए , क्योंकि जरूरी
नहीं परिस्थिति हमेशा
एक जैसी हो।
कभी किसी स्थिति
में अगर उसको
अपने लिए कुछ
करना हो तो , वापस मां-बाप का
दरवाज़ा ना खटखटाना
पड़े। यह भी जरूरी नहीं
कि उसके लिए
आपने जिसको चुना
है, वह सही
ही हो। जिस लड़की
को अपने मां-
बाप की परवाह
है,या तो वह उस घर
में घुटते-घुटते
रह जाएगी, या नही सह पाई तो
जान दे देगी।
हत्यारा बनने से बदलाव कही
ज्यादा अच्छा है
|
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