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श्रद्धा खाने नहीं आऊंगा

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  श्राद्ध खाने नहीं आऊंगा पापा आपको तो सेंचुरी लगानी है आप तो मेरे तेंदुलकर हो   " अरे ! भाई बुढापे का कोई ईलाज नहीं होता . अस्सी पार हो चुके हैं . अब बस सेवा कीजिये ." डाक्टर पिता जी को देखते हुए बोला .   " डाक्टर साहब ! कोई तो तरीका होगा . साइंस ने बहुत तरक्की कर ली है ."   " शंकर बाबू ! मैं अपनी तरफ से दुआ ही कर सकता हूँ . बस आप इन्हें खुश रखिये . इस से बेहतर और कोई दवा नहीं है और इन्हें लिक्विड पिलाते रहिये जो इन्हें पसंद है ." डाक्टर अपना बैग सम्हालते हुए मुस्कुराया और बाहर निकल गया .   शंकर पिता को लेकर बहुत चिंतित था . उसे लगता ही नहीं था कि पिता के बिना भी कोई जीवन हो सकता है . माँ के जाने के बाद अब एकमात्र आशीर्वाद उन्ही का बचा था . उसे अपने बचपन और जवानी के सारे दिन याद आ रहे थे . कैसे पिता हर रोज कुछ न कुछ लेकर ही घर घुसते थे . बाहर हलकी - हलकी बारिश हो रही थी . ऐसा लगता था जैसे ...

कर्म का सिद्धांत

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  मैं मुश्किल में पड़े व्यक्ति की मदद के बदले ,, कभी कुछ नहीं लेता अस्पताल में एक एक्सीडेंट का केस आया । अस्पताल के मालिक डॉक्टर ने तत्काल खुद जाकर आईसीयू में केस की जांच की। दो - तीन घंटे के ओपरेशन के बाद डॉक्टर बाहर आया और अपने स्टाफ को कहा कि इस व्यक्ति को किसी प्रकार की कमी या तकलीफ ना हो। और उससे इलाज व दवा के पैसे न लेने के लिए भी कहा ।   तकरीबन 15 दिन तक मरीज अस्पताल में रहा। जब बिल्कुल ठीक हो गया और उसको डिस्चार्ज करने का दिन आया तो उस मरीज का तकरीबन ढाई लाख रुपये का बिल अस्पताल के मालिक और डॉक्टर की टेबल पर आया। डॉक्टर ने अपने अकाउंट   मैनेजर को बुला करके कहा ... इस व्यक्ति से एक पैसा भी नहीं लेना है। ऐसा करो तुम उस मरीज को लेकर मेरे चेंबर में आओ। मरीज व्हीलचेयर पर चेंबर में लाया गया। डॉक्टर ने मरीज से पूछा प्रवीण भाई ! मुझे पहचानते हो ! मरीज ने कहा लगता तो है कि मैंने आपको कहीं देखा है। ...

खुद्दारी

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  मैं रोजगार लेने घर छोड़कर निकला हूं, ,   किसी का रोजगार छीन कर पाप कमाने नहीं।। टेलरिंग का हुनर उसके खून मे स्वयं ही आ गया था अपने पिता की वजह से पर विरासत में मिली ग़रीबी अब आगे झेली नही जा रही थी ... पिता ने कभी मुम्बई में किसी बड़ी दुकान पर काम किया था पर गांव के जमीनी झगडें ने पलट कर उसे गांव से वापस जोड दिया .... और फिर वही थोडा है थोडे की जरूरत है वाली कहानी ..... गांव छोटा सा है यहां हुनर की क्या कद्र होती .... और ऊपर से वही था परिवार में पिता के बाद घर का बडा .... परिवार मे वृद्ध माता - पिता छोटी बहन सहित उसकी पत्नी और दो बच्चे .... आखिर उसने हिम्मत बटोरी ... और सुबह की बस पकड़ वह दिल्ली आ पहुंचा .... जहां उसने एक गुरुद्वारे में शरण ली .... वहां रहने और खाने के साथ प्यार तो मिला ही साथ मे एक श्रद्धालु के जरिए एक रैडिमेड कपड़े बनाने वाली फैक्ट्री का पता भी मिल गया .... हिम्मत करके आखिर वहां तक पहुंच ही गया .....