श्रद्धा खाने नहीं आऊंगा
श्राद्ध खाने नहीं आऊंगा पापा आपको तो सेंचुरी लगानी है आप तो मेरे तेंदुलकर हो " अरे ! भाई बुढापे का कोई ईलाज नहीं होता . अस्सी पार हो चुके हैं . अब बस सेवा कीजिये ." डाक्टर पिता जी को देखते हुए बोला . " डाक्टर साहब ! कोई तो तरीका होगा . साइंस ने बहुत तरक्की कर ली है ." " शंकर बाबू ! मैं अपनी तरफ से दुआ ही कर सकता हूँ . बस आप इन्हें खुश रखिये . इस से बेहतर और कोई दवा नहीं है और इन्हें लिक्विड पिलाते रहिये जो इन्हें पसंद है ." डाक्टर अपना बैग सम्हालते हुए मुस्कुराया और बाहर निकल गया . शंकर पिता को लेकर बहुत चिंतित था . उसे लगता ही नहीं था कि पिता के बिना भी कोई जीवन हो सकता है . माँ के जाने के बाद अब एकमात्र आशीर्वाद उन्ही का बचा था . उसे अपने बचपन और जवानी के सारे दिन याद आ रहे थे . कैसे पिता हर रोज कुछ न कुछ लेकर ही घर घुसते थे . बाहर हलकी - हलकी बारिश हो रही थी . ऐसा लगता था जैसे ...