वो बाप हैं मेरे

 


       वो बाप हैं मेरे

मुन्नुजी किसान आदमी हैं।

पढ़े लिखे नहीं मगर समझदार आदमी हैं।

भक्ति भाव वाले  संतुष्ट आदमी हैं।

बचपन से उनकी एक आदत रही है। लगभग हर दिन गाँव के आठ दस मंदिरों में से किसी भी एक मन्दिर की साफ सफाई वो जरूर करते हैं .....

मुन्नुजी के चेहरे पर सदैव स्वस्थ और तरुण मुस्कुराहट यूँ विराजमान रहती है , जैसे मुस्कान ने अमृतपान किया हो।

 

 माँ के आशीर्वाद से बचपन में ही वंचित होने वाले मुन्नुजी को पिता जी का आशीर्वाद अभी भी प्राप्त हो रहा है। बचपन से आवाज नहीं है, थोड़ी सुनने की क्षमता भी कमजोर है। मगर पत्नी से प्रेम बहुत है। वैसे भी.…भावनाएँ शब्दों का मोहताज नहीं होती।

 

मुन्नुजी को सुधा देवी के रूप में पत्नी बहुत सुंदर मिली अक्सर जिस परिवार में महिलाएँ नहीं होती, उस परिवार में आयी नयी दुल्हन सत्ता की बागडोर शीघ्र ही अपने हाथों में ले लेती है। मगर सुधा देवी का व्यवहार इसके बिल्कुल विपरीत रहा। शायद उनकी मंशा रही हो , अपने मूक वधिर पति से दब के रहने की, कि कहीं पति को ऐसा अहसास हो कि इस औरत ने गूँगे बहरे पुरुष को पति के रूप में स्वीकार कर के अहसान किया है। संतुष्ट स्वभाव के मुन्नुजी को सत्ता से क्या मतलब.....इन दोनों के आपसी प्रेम समर्पण के भाव के बीच घर की सत्ता ठोकर खाती मुन्नुजी के पिताजी के पास ही दुबकी रही।

 

मुन्नुजी को दो बेटे हुए।

जैसे ही बड़ा बेटा कन्हैयालाल जवान हुआ, जल्दी से उसकी शादी कर के मुन्नुजी ने गृहस्थी बहु बेटे को सौप ी ।बेटे बाप पर ही गये थे। सबकुछ अच्छा ही चल रहा था।

 

मुन्नुजी का परिवार आज के जमाने के लिए एक आदर्श परिवार था। मंदिर मंदिर झाड़ू लगाने वाले मुन्नुजी के घर की सफाई भगवान के जिम्मे थी लालच , नफरत , छल , कपट जैसे कचरे उनके घर के आसपास भी नहीं फटकते थे

 

जब उनके बुजुर्ग पिता पर पक्षाघात ने हल्का प्रहार किया, तब उन्हें खुद से चलने फिरने में परेशानी होने लगी। वैसे भी वो काफी बूढ़े हो गये थे। अब मुन्नुजी की दिनचर्या बदल चुकी थी। अब उनके जीवन की प्राथमिकता अपने पिता की सेवा करना ही रह गया था। खेती बाड़ी बड़ा बेटा पहले ही संभाल चुका था।  छोटा बेटा बचपन से कुशाग्र बुद्धि का था। उसको पढ़ाने के लिए सबने अपने अपने हिस्से का त्याग किया। भाई ने पसीना लगाया तो भाभी ने गहने लगा दिया। सुधा देवी ने जिंदगी भर की सारी दुआएँ इकट्ठी कर के छोटे बेटे पर न्योछावर कर दिया।  मुन्नुजी क्या लगाते। सदैव की भाँति मंदिर मंदिर जाते तो अब भगवान को कुछ देर निहारते गूँगे मुँह से क्या बोलते....?

मगर कहते हैं !!

 

आज मिले या कल मिलता है

हर पूजा का फल मिलता है

 

देवताओं ने गूँगे मुँह की आवाज का मान रखा। हेमंत उर्फ हेमू ने सरकारी इंजीनियर की नौकरी पाने में सफलता प्राप्त की।

 

कन्हैया बाबू का सीना थोड़ा और चौड़ा हो गया। मुन्नुजी के संतोषी मुस्कान में थोड़ी और वृद्धि हो गयी।

 

कन्हैयालाल की इच्छा जल्द से जल्द छोटे भाई को गृहस्थ में बांधने की थी। बोलियाँ लगने लगी। अचानक से कन्हैयालाल  के ढेर सारे दोस्त व्यवहार, नाते रिश्तेदार पैदा हो गए।  मुन्नुजी की क्षमता को तौला जाने लगा। भाभी ने एक तस्वीर देखकर लड़की को देखने की इच्छा जतायी।

 

दोनों परिवार मिले सुधा देवी को लड़की की कुछ ढूंढती हुई सी आँखें भा गयी। भाभी को इतनी पढ़ी लिखी लड़की के द्वारा पैर छू कर प्रणाम करना दिल जीत लिया। लड़की से उसका नाम  पूछा गया, लड़की कुछ बोल नहीं पायी ढूंढती आँखों से मुन्नुजी की तरफ देखती रही। वैसे ही....जैसे मुन्नुजी मंदिर की मूर्तियों को देखते रहते थे।

 

दर्द ने दर्द को पहचान लिया। मुन्नुजी जिंदगी में पहली बार अँगुली से इशारा करते हुए आँ आँ कर के चीखते हुए कुछ माँग रहे थे - " यही बहू चाहिए!!! यही चाहिए!!! "

 

और अचानक से वहाँ बहुत ही गहरा सन्नाटा छा गया। लड़की अपनी बहती आँखों,  ढूंढती नजरों से  मुन्नुजी को देखे जा रही थी।  मुन्नुजी उम्मीद लगाए कभी कन्हैयालाल तो कभी हेमू की तरफ बड़े ही अशक्त एवम लालसा भरी नजरों से टकटकी लगाए देख रहे थे। दोनों तरफ के परिवार वाले हेमंत की तरफ देख रहे थे। हेमंत हाथ नचा कर बोला - " मैं क्या.....मेरी औकात क्या?? उनकी माँग इंद्र भी ठुकराए तो मैं उससे लड़ जाऊँ !!! वो बाप हैं मेरे!!

मगर एक बार लड़की से तो पूछ लो "

 

लड़की से इशारों में पूछा गया तो वो उठकर आगे बढ़ी और मुन्नुजी का पैर  पकड़ ली। उन्होंने दोनों हाथ उसके सर पर रख दिये।

 

बदहवास सन्नाटों को एक हर्ष की किलकारी ने चीर कर रख दिया

 

सबके सब अति उत्साहित थे।  लड़की की ढूंढती आँखों में संतुष्टि का भाव था।  खोज पूरी हुई। आँखों से धार तेज हो गयी।

 

बात दहेज की चली। लड़की के दोनों भाइयों ने कन्हैयालाल  के सामने हाथ जोड़ लिये - " आप कुछ मत माँगिए। पिताजी बहुत दौलत छोड़ गए हैं। हम आपकी उम्मीद से चौगुना देंगे। इसलिए नहीं कि आपने मेरी मूक वधिर बहन को स्वीकार किया है!!! इसलिए भी नहीं कि आपका भाई सरकारी इंजीनियर है!! बल्कि इसलिए कि ऐसा परिवार हमने आजतक देखा है.... सुना है "

 

बारात की तैयारियाँ जोरों पर थी। कन्हैयालाल  अपनी शादी में छूट चुके शौक को भी भाई की शादी में पूरा कर लेना चाहता था। इसलिए बहुत ही व्यस्त था।  मगर एक दिन हेमू ने भरे घरवालों के बीच ऊँची आवाज में अपने बड़े भाई को टोक दिया - " दादा!!! हर चीज में आपकी दादागिरी नहीं चलेगी "

 

सब के सब लोग चौंक पड़े। कन्हैयालाल जहाँ था वहीं ठहर गया। हेमू पहली बार अपने बड़े भाई से ऊँची आवाज में बात किया था।

 

कन्हैयालाल डपटता हुआ सा पूछा - "  पागल हो गया है क्या ?? क्या बोल रहा है ? "

 

भाई की डाँट से अंदर ही अंदर काँप गया हेमंत। मगर फिर से हिम्मत जुटा कर बोला - " पागल नहीं हूँ दादा !!! हमारा बियाह है,  हमारी भी कुछ इच्छाएँ हैं "

 

" क्या चाहता है तू ? "

 

" दुल्हन के लिए जो भी गहने बनवा रहे हैं, भले कम बनवाएँ....मगर हर गहने का दो सेट बनवाएँ एक भाभी के लिए भी !! " - हेमंत ने अपनी भाभी के सूने गले की तरफ देखता हुआ बोला

 

सुधा देवी बेटे की बात सुनकर गर्व से भर गयी। भाभी भावुक हो गयी कन्हैयालाल भुनभुनाता , सर को झटकता वहाँ से चला गया - " वकलोल कहीं का "

 

हेमंत व्हाट्सएप पर अपनी होने वाली दुल्हन को मैसेज टाइप करने लगा - " तेरी इच्छा पूरी हुई "

 

इंजीनियर ने एक बार मुँह खोला तो फिर बंद ही नहीं कर पाया।

 

" हेमू के लिए फॉर्च्यूनर का साटा कर दिया हूँ, पापा के लिए बोलेरो कर दिया हूँ " – कन्हैयालाल  घर में बता रहा था।

 

" पापा के लिए भी फॉर्च्यूनर ही कीजिए दादा " - हेमंत ने अपनी इच्छा जाहिर की।

 

" क्यों?? "

 

" वो बाप हैं मेरे " - हेमंत गर्व से बोला।

 

"  बाबा और पापा के लिए कुर्ता धोती सिलवाने दे दिया हूँ "

 

" मैं और आप ?? "

 

" कोट पैंट की नापी दे दिया !! "

 

" पापा के लिए भी कोट पैंट सिलवाइए दादा " - हेमंत बड़े भाई से मनुहार करता बोला।

 

" पागल है कि?? "

 

" वो बाप हैं मेरे !! " - इंजीनियर गर्व से बोला।

 

सुधादेवी माथा पीट ली, बुढ़ापे में बाप को कोट पैंट पहनाएगा?? भाभी मुस्कुरा के रह गयी , जबकि कन्हैयालाल  हामी भरता घर से निकल गया।

 

सारी तैयारी हो चुकी थी। बाबा बारात जाने में असमर्थ थे। उनकी देखभाल के लिए एक आदमी की व्यवस्था कर दिया गया था। मुन्नुजी कोट पैंट पहन कर बेटे की बारात में जायेगें , ये बात सारे गाँव में चर्चा का विषय था।

 

वो समय भी आया जब बारात निकलने वाली थी। सब लोग गाड़ी में बैठे या नहीं,  ये देखने के लिए कन्हैयालाल खुद सारी गाड़ियों में झाँक रहा था। पिताजी उसको कहीं नजर नहीं रहे थे। दो चार लोगों से पूछा - कोई संतुष्ट जवाब नहीं मिला। सब लोगों में कानाफूसी होने लगी। सबके सब घबराए हुए से एक दूसरे से ही पूछने लगे। मुन्नुजी को ढूंढा जाने लगा।

 

अचानक से कुछ की नजर घर की तरफ गयी। वो सब हैरत से देखते हुए अपने आसपास के लोगों को इशारा कर के घर की तरफ देखने को कहने लगे। सारे बाराती मुँह फाड़े घर की तरफ देख रहे थे। कन्हैयालाल  जब घर की तरफ देखा तो  कलेजा पकड़कर बैठ गया।

 

घर से मुन्नुजी निकले अपने कंधे पर अपने बूढ़े बाप का हाथ रखे, उन्हें संभाले , डगमगाते हुए से गाड़ी की तरफ बढ़ रहे थे। खुद के लिए सिलवाये गये कोट पैंट को अपने बूढ़े बाप को पहनाये हुए। पिता के लिए लाये गये धोती कुर्ता को खुद पहने हुए!!!  नजर उठा कर गाँव वालों की तरफ देखे,  जैसे बोल रहे हों - " ये बाप हैं मेरे !!! "

 

कन्हैयालाल ने दौड़ के अपना कंधा बाबा के दूसरी तरफ लगा दिया।

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